SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 110
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीविंशति-3/ कज्जमकजं च उज्जुयं भणइ । तं तह आलोइज्जा मायामयविप्पमुक्को य ॥११॥ पच्छित्तमयं करणा अन्ने सुद्धिं भणंति नाणस्स । १६ प्रायकाप्रकरणेला तं च न जम्मा एवं ससल्लवणरोहणप्पायं ॥ १२ ॥ अवराहा खलु सल्लं एयं मायाइभेयओ तिविहं । सव्वंपि गुरुसमीवे उद्धरियव्वं श्चित्त विशिका ॥१८॥ | पयत्तण ॥ १३ ।। न य तं सत्थं च विसं व दुप्पउत्तुव्य कुणइ वेयालो । जंतव्व दुप्पउत्तं सत्तुव्व पमाइओ कुद्धो । १४ ।। जे कुणइ | भावसल्लं अणुद्धियं उत्तिमढकालाम्म । दुल्लहबोहीयत्तं अणंतसंसारियत्तं च ॥ १५ ॥ तो उद्धरति गारवरहिया मूलं पुणब्भवलयाणं। मिच्छईसणसल्लं मायासल्लं नियाणं च ॥ १६ ॥ चरणपरिणामधम्मा दुच्चरियं अद्धिई दढं कुणइ । कहवि पमायावट्टिय जाव न | आलोइयं गुरुणो ॥ १७॥ जं जाहे आवज्जइ दुच्चरियं तं तहेव जत्तेणं । आलोएयव्वं खलु सम्म सइयारमरणभया ॥ १८ ॥ एवमवि य पक्खाई जायइ आलोयणाओ विसओत्ति । गुरुकज्जाणालोयण भावाणाभोगओ चेव ॥ १९ ॥ जं जारिसेण भावेण सेवियं किंपि इत्थ दुच्चरियं । तं तत्तो अहिगेणं संवेगेणं तहाऽऽलोए॥ २०॥ इति आलोयणाविंशिका १५॥ पच्छित्ताओ सुद्धी तहभावालोयणेण जं होइ । इहरा ण पीढबंभाइओ सआ सुकडभावेऽवि ॥१॥ अहिगा तक्खयभावे पच्छितं किंफलं इहं होइ? । तदहिगकम्मक्खयभावओ तहा हंत मुक्खफलं ॥२॥ पावं छिंदइ जम्हा पायच्छित्तंति भण्णए तम्हा । पाएण वावि चित्तं सोहयई तेण पच्छित्तं ॥ ३ ।। संकेसणाइभेया चित्तअसुद्धीइ बज्झई पावं । तिव्वं चित्तविवागं अवेइ तं चित्तसुद्धीओ ॥४॥ किच्चेवि कम्मणि तहा जोगसमत्तीइ भणियमयंति। आलोयणाइभेया दसविहमेयं जहा सुत्ते ॥ ५॥ आलोयण पडिकमणे मीस ५॥१८॥ लविवेगे तहाँ विउस्सगे। तव छेय मूल अणवट्ठया व पारंचियं चेव ॥ ६ ॥ वसहीओ हत्थसया बाहिं कज्जे गयेस्स विहिपुच्वं । गमणाइगोयरा खलु भणिया आलोयणा गुरुणा ।। ७ ॥ सहसच्चिय' अस्समियाइमावगमणे य चरणपरिणामा । मिच्छादुकड-1 RECTEVERSY-SRX For Private and Personal Use Only
SR No.020579
Book TitlePratyakhyan Swarupam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
PublisherRushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
Publication Year1927
Total Pages120
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy