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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शुद्धिः नामदुमसंसहा गया होइ । बत्थाइजा ॥ १५ ॥ओ य आम धम्मदेश श्रीविंशति संजोयणाइरहिओ भोगोवि इमस्स कारणओ॥ ८॥ दवाईसंजोयणमिह व साहिगं तु अपमाणं । रागेण सइंगालं दोसेण सधू-13/१४ भिक्षाकाप्रकरणे मग जाण ॥ ९॥ वेयण यावच्चे इरियट्ठाए य संजमट्ठाए । तह पाणवत्तियाए छटुं पुण धम्मचिंताए ॥ १० ॥ वत्थं पाहाकम्मा विशिका ॥१६॥ | इदोसदुड़े विवज्जियव्वं तु । दोसाण जहासंभवमेएसिं जोयणा नेया ॥ ११ ॥ इत्थेव पत्तभेएण एसणा होइऽभिग्गहपहाणा । सत्त चउरो य पयडा अन्नावि तहाऽविरुद्धत्ति ॥ १२॥ संसट्ठमसंसट्ठा उद्धड तह होइ अप्पलेवा य । ओग्गहिया पग्गहिया उज्झिय-18 धम्मा य सत्तमिया ॥ १३ ॥ उदिट्ठ पेह अंतर उज्झियधम्मा चउत्थिया होइ । वत्थेवि एसणाओ पन्नत्ता वीयरागेहिं ॥ १४ ॥ | सिज्जावि इहं नेया आहाकम्माइदोसरहियावि । तेवि दलाविक्खाए इत्थं सयमेव जोइज्जा ॥ १५॥ एसावित्थीपंडगपसुरहिया जाण सुद्धिसंपुन्ना । अन्नापीडाइ तहा उग्गहसुद्धा मुणेयव्वा ॥ १६ ॥ एसाविहु विहिपरिभोगओ य आसंगवज्जियाणं तु । वसही सुद्धा भणिया इहरा उ गिह परिग्गहओ ॥ १७ ॥ एवं आहाराइसु जत्तवा निम्ममस्स भावेण | नियमेण धम्मदेहा-18 रोगाओ होइ निव्वाणं ॥ १८ ॥ जाणइ असुद्धिमेसो आहाराईण सुत्तभणियाणं 1 सम्मुवउत्तो नियमा पिंडेसणभाणयविहिणा य ॥ १९ ।। इति भिक्षाविंशिका त्रयोदशमी १३ ॥ भिक्खाए वच्चंतो जइणो गुरुणो करति उवओगं । जोगतरं पवज्जिउकामो आभोगपरिसुद्धं ॥१॥ सामीवेणं जोगो एसो & सुत्ताइजोगओ होइ । कालाविक्खाइ तहा जणदेहाणुग्गहट्ठाए ॥२॥ एयविसुद्धिनिमित्तं अद्धागहणट्ठ सुत्तजोगट्ठा । जोगतिगेणुवउत्ता गुरुआणं तह पमग्गति ॥३॥ चिंतेइ मंगलमिहं निमित्तसुद्धिं तिहा परिक्खंता । कायवयमणेहिं तहा नियगुरुयणसंग ॥१६॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020579
Book TitlePratyakhyan Swarupam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
PublisherRushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
Publication Year1927
Total Pages120
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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