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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४० D प्रश्नव्याकरणसूत्रे अथ स्थलचरेषु चतुष्पदप्रकारानाह--'कुरंग०' इत्यादि। मूलम्-कुरंग रु सरभ चमर संबर उरन्भ-सलय-पसर-गोणरोहिय-य-गय-खर-करभ-खग्ग-वानर.गवय-विग-सियाल-कोलमज्जार-कोलसुणह-सिरिकंदलगावत्त-कोकतिय-गोकपग-मियमहिस वियग्घ-छगल-दीविय-साण-तरच्छ अच्छभल्ल-सदल-सीह-चिल्लल-चउप्पय-विहागाकए य एवमाई ॥सू०७ ॥ टीका-कुरंगा हरिणाः, रुरवो-मृगविशेषाः, सरभाः वन्यपशुविशेषाः विशालकायाः, अष्टापदाः 'परासरे 'ति ख्याताः ये महागजानपि पृष्ठे स्थापयन्ति, चमरा अन्यगावः येषां केशानां चामराणि भवन्ति, संवराः अनेकशाखशङ्गाः द्विखुरा आरण्यपशवः 'सांभर' इति प्रसिद्धाः ' उरभ' उरभ्राः मेपाः, 'समय' किया करते हैं, तथा इनके सिवाय और भी जो जलचर जीव होते हैंउन्हें भी मार कर थे आनंद मग्न बनते हैं। मू. ६ ॥ ____ अब सूत्रकार स्थलचर नियंञ्चों में जो चतुष्पदों के प्रकार हैं उन्हें इस सूत्र द्वारा प्रकट करते हैं-'कुरंगरुरु' इत्यादि। टीकार्थ-(कुरंग) कुरंग हिरणको कहते हैं। (हरु) रुरु नाम भी मृगका है, परन्तु यह सामान्य भृग से विशेष प्रकार का होता है। (सरभ) सरभ नाम अष्टापद का है । यह शरीर में विशाल होता है । परोसर भी इस का दूसरा नाम है । ये महागजों को भी अपनी पीठ पर बैठा लेता है। (चमर) चमरी गायों का नाम चमर है। इनके बालों के चामर बनते हैं। (संबर) संबर को हिन्दी भाषा में सांभर कहते हैं। इनके सींगो में | હિંસા કર્યા કરે છે, અને તે સિવાયનાં બીજાં જે જળચર જ હોય છે, તેમની પણ હત્યા કરવામાં તેમને મજા આવે છે. સૂત્ર હવે સૂત્રકાર સ્થળચર તિર્યંચોમાં જે જાનવરેના પ્રકારો છે તેમને આ सूत्र द्वारा प्रकट ४२ -- "कुरंगहरु" त्याहि. टी -"कुरंग" उ२।शुने २४ छ. “रुरु" २० ५। भृगनी मे पास ४२ છે. “રમ” સરભ અષ્ટાપદ નામના પ્રાણીને કહે છે. તે શરીરે વિશાળ હોય છે તેનું બીજું નામ પરાસર પણ છે. તે મોટા હાથીઓને પણ પિતાની પીઠ પર मेसाही शे छ. “ चमर" यम आयाने म२ . तेमना पामाथी याभ२ मने छ. " संघर" स१२ने साम२ ४ छ तेना शीगामाथी मी For Private And Personal Use Only
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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