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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८५० মস্ক খাই श्रृङ्गम् , शैल: शिलेव शैला पाषाणः, काचा पसिद्धः, वरचै श्रेष्ठवस्त्रम् , चर्म= व्याघ्रादिचर्म एभिनिर्मितानि पात्राणि कीदृशानीमानि ? ' महारिहाई ' महार्हाणि बहुमूल्यानि तथा-' परस्स' परस्य-वभिनन्नजस्य ' अझोववायलोभजणणाई' अध्युपपातलोभजननानि, तत्र-अध्युपपातः ग्रहणैकाग्रचित्तता, लोभः = मूर्छा तयोर्जननानि-उत्पादकानि यानि तानि एतानि ‘गुणबओ' गुणवतः मूलगुणादि सम्पन्नस्य मनसापि परिकड्डिा' परिकर्षयितुम् आदात्तुं न कल्पन्ते, तथा'न यावि' न चापि नैव ' संजयाणे ' संयतानां, 'ओसहभेसज्जभोयणट्ठयाए' औषधभैषज्यभोजनार्थतया, तत्र औषधम्-एकद्रव्यनिष्पादितम् , भैषज्यम् अनेक द्रव्यनिष्पादितम् , भोजनं च प्रतीतमेव, एपामर्थतया प्रयोजनाय, 'पुष्फफलकंद का पात्र, शैल-पाषाण का पात्र, कांच का पात्र, सुन्दर वस्त्र का और व्याघ्र आदि के चर्म का पात्र, वह जो साधु के मूलगुणों से युक्त है मन से रखने की चाहना नहीं करता है। अर्थात् मैं इन लोहादिकों से निर्मित हुए पात्रों को रखलूं इस प्रकार का वह विचार भी मन में नहीं लाता है, क्यों कि धातु अथवा मणि आदिकों के बने हुए पात्र ( महारिहाई ) बहुमूल्य वाले होते हैं, तथा (परस्स अज्झोववायलोभजणणाई) दूसरों में अध्युपपान और लोभ इनके उत्पादक होते हैं। चित्त में ग्रहण करने की एकाग्रता का बना रहना इसका नाम अध्युपपात और उनमें मूच्छाभाव का होना इसका नाम लोभ है। इसी तरह (संजयाणं ) सकलसंयमीजनों कों (ओसहभेसज्जभोयणद्वाए ) औषध एक द्रव्य से बनाई गई दवा, भैषज्य-अनेक द्रव्यों के मेल से बनाई गई दवा, तथा भोजन-आहार इनके प्रयोजन के निमित्त (पुप्फफलकंदमूलाइयाई) શેલ પથ્થરનું પાત્ર, કાચનું પાત્ર સુંદર વસ્ત્રનું કે વ્યાઘચર્મ આદિનું પાત્ર, તે પ્રકારના પાત્રને સાધુને મૂળ ગુણેથી યુક્ત હોય તે સાધુ રાખવાની મનમાં ઈચ્છા પણ કરતો નથી. એટલે કે આ લેહાદિકથી નિર્મિત પાત્રને ગ્રહણ કર્યું તે પ્રકારને વિચાર પણ તેના મનમાં થતું નથી, કારણ કે ધાતુ અથવા મણિ माहिमांथी मनास पात्र " महारिहाइ” i भूयवान डाय छ, तथा " परम्स अझोववायलोभजणणाई" भीमा ध्युमपात भने सोमनापाદક હોય છે. તે પ્રાપ્ત કરવાની ચિત્તમાં ઉત્સુકતા રહ્યા કરવી તેનું નામ અધ્યુંપપાત છે અને તેમનામાં મૂચ્છ ભાવ હવે તે લેભ કહેવાય છે. એ જ प्रमाणे " संजयाण” स७१ सयभी नामे " ओसहभेसज्जभोयणदाए" ઓષધ-એક દ્રવ્યમાંથી બનાવેલી દવા, હૈષજ્ય અનેક દ્રવ્યોના મિશ્રણથી બનાवही , तथा लोगन मा २, २ ५यागने निमित्त “ पुप्फ फल कंदमूला For Private And Personal Use Only
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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