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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुदर्शनी टीका म०४ सू०१० प्रणीतभोजनवर्जन'नामकपञ्चमभावनानिरूपणम्८९७ भवइ अंतरप्पा आरयमणा विरयगामधम्मे जिइंदिए बंभचेरगुत्ते ॥ सू० १०॥ टीका-पंचमं ' पञ्चमी प्रणीतभोजनवर्जनरूपां भावनामाह- आहारपणीयनिद्धभोयणविवज्जए' आहारप्रणीतस्निग्धभोजनविवर्जन:-आहारः = अशनादिः, स च प्रणीतः प्रगलस्नेहबिन्दुश्च, तथा-स्निग्ध-चिक्कणं च तद् भोजनं च-स्निग्धभोजनम् , अनयो र्द्वन्द्वः, तस्य विवर्जका परित्यक्ता, तथा 'संजए' संयतः संयमवान् ' मुसाहू ' सुसाधुः निर्वाणसाधक योगसाधनतत्परः, तथा‘ववगयखीरदहिसप्पिनवणीयतेलगुडखंडमच्छंडियखज्जगविगइपरिचत्तकयाहारो' व्यपगतक्षीरदधिलपिनवनीततेलगुडखण्डमत्स्यण्डिकमधुखाद्यकविकृतिपरित्यक्तकृता हारः-तत्र-व्यपगताः परिहताः क्षीरं- दुग्धं, दधि-प्रसिद्धम् , सर्पिः-घृतम् , नवनीतं-'मक्खन' इति भाषाप्रसिद्धम् , तैलं प्रसिद्धम् , गुडः पसिद्धः खण्डः-शर्करा, अब मूत्रकार इस व्रत की पांचवी भावना को कहते हैं-'पंचमआहारपणीय' इत्यादि। ___टीकार्थ–(पंचम) पांचवीं भावना इस व्रत की प्रगीत भोजन वर्जन रूप है, वह इस प्रकार से है-(आहारपणीयनिद्धभोयणविवज्जए) जो आहार प्रणीन-जिसमें से घृत की विन्दुएँ नीचे टपक रही हों ऐसे कामोद्दीपक तथा स्निग्ध-रसयुक्त हो साधु को वह नहीं खाना चाहिये। क्यों कि वह (संजए) वह संयमवाला होता है और (सुसाहू ) निर्वाण साधक मनोबाकाय योग के साधन करने में तत्पर रहता है, इसलिये उसको ( वधगयखीरदहिसप्पिनवगीयतेलगुडखंडमच्छंडिय मंहुखजगविगइपरचित्तकयाहारो) दूध, दही, धृत, मक्खन, तैल, गुड, वे सूत्रा२ २॥ तनी पांयमी लापन ताये 2-"पंचमं आहारपणीय"त्याla Nxt-" पंचमं” मा तनी पांममी भावना " प्रणीतभोजन" त्यास नामनी छे. ते माप्रमाणे छ-"आहारपणीयनिद्धभोयणविवज्जए" प्रति, मेटी કે જેમાંથી ઘીનાં ટીપાં નીચે ટપકતાં હોય એ કામોદ્દીપક તથા સ્નિગ્ધરસ युत माडा२ साधुओ से नही. ४१२७४ ते " संजए' सयभी हाय छ भने "सुसाहू" निवा नासाथ मना पाय यो सावाने तत्५२ सय छ तथा तेभो " वगय-खीर दहिसप्पि-नवणीयतेलगुडखंडमच्छंडियमहुखज्जगविगइ. परचित्तकयाहारो " ३५, ४डीघी, भाम, तेस, , सा४२, मां कोरेथा For Private And Personal Use Only
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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