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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रश्नव्याकरणसूत्र एरावण इवकुंजराणं सीहो जहा लिगाण पवरो सुपन्नगाणं च वेणुदेव धरण जहा पण्णग इंदराया कप्पाणं चेव बंभलोए, सभासु य जहा भवे सुहम्मा ठिईसु लवसत्तमव्यपवरा दाणाणं चेव अभओ दाणं किमिराओ चेव कंबलाणं संघयणे घेव बजरिसभे संठाणे चेव समचउरसे झाणेसु य परं सुक्कन्झाणं नाणेसु य परमकेवलं तु सिद्धं लेसासु य परमसुक्कलेसा तित्थकरो चेव जहा मुणीणं वासेसु जहा विदेहे गिरिराया चेव मंदरवरे वणेसु जहा गंदणवणं पवरं दुमेसु जहा जंबू सुदंसणा वीस्सुयजसा जीयानामेणं अयं दीयो, तुरगवई गयवई रहवई नरवई जह वीसुए चेव राया रहिए चेव जहा महारहगए एवमणेगगुणा अहीणा भवंति एगम्मि बंभचेरे ॥ सू० २ ॥ टीका-'जम्मि य' इत्यादि । 'जम्मि य' यम्मिश्च ब्रह्मचर्ये 'भग्गे' भग्ने-विराधिते सति 'सब्बं ' सर्व ‘विणयसीलतबनि यमगुणसमूई' विनयशीलतपोनियमगुणसमूहः-विनयो गुरुपतिपत्ति लक्षणः, शील-सदाचारः, तपः अनशनादिकं द्वादशविधं, नियमा=अभिग्रहः, गुणसमूहः-जानादिगुणसमुदायः, एषां समाहारे विनयशीलतपोनियमगुणसमूहं क्रियाज्ञानं चेतिद्वयमपीत्यर्थः, सहसा सटिति 'संभग्गमहियचुणिय कुसल्लियपल्लहपंडिय खंडियपरिसडियविणासियं संभ फिर ब्रह्मचर्य का माहत्म्य कहते हैं--'जम्मिय भग्गे' इत्यादि० । टीकार्थ-(जम्मिय भग्गे) जिस ब्रह्मचर्य के विराषित होने पर ( सव्वं विणयसीलतवणियमगुणसमूहं ) समस्त विनय, शील, तप, नियम और गुण समूह-अर्थात्-क्रिया और ज्ञान ये दोनों ही (सहसा) इकदम (संभग्गमहिय-चुणिय-कुसल्लिय-पलट-पडिय-खंडिय-परिस वे सूत्रा२ प्राय भडात्म्य ४ छ- “ जम्मिय भगगे" 5. 21st-- “जम्मिय भग्गे" रे ब्रह्मय विराधन! तi " सव्व विणय सीलतवणियमगुणसमूह " समस्त विनय, शाश, त५, नियम भने गुसभूड मेरो लिया भने ज्ञान मने " सहसा" मयान " संभग्गमहियचुग्णियकुसलिय-पल्लठ्ठ-पडिय खंडिय-परिसडिय-विणासिय होइ” टेवा पानी For Private And Personal Use Only
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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