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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७६२ प्रश्नव्याकरणसूत्रे टीका---'पंचम' पश्चमी विनयभावनामाह- साहम्मिएसु' सार्मिकेषु पर्यायज्येष्ठं 'विणओ' विनयः । पउंजियव्यो' प्रयोक्तव्या-करणीयः । तथा। उवगारणपारणामु' उपकारगपारणयो तत्र-उपकारणं स्वपरयोरुपकारकरणं, तत्र-स्वस्य संयमपालनेन, परस्य ग्लानाद्यवस्थायां वैयारत्यादि करणेन, पारणा तपसः पारणा श्रुतस्य पारगमले वा पारणा. तयोःविनयः प्रयोक्तव्या-द्वयोरपि मृदुस्वाभावतमा स्थातव्यमित्यर्थः, तथा- बायणपरियट्टणासु' वाचनापविननयोधाचना सूत्रग्रहणम् , परिवर्तना-तस्यैवगुणनम् , तयोः विनयः बन्दनादिल अब सूत्रकार पांचवीं भावना को करते हैं-'पंचम साहम्मिएसु' इत्यादि। ___टीकार्थ-(पंचमं ) इस बल की पांचवीं भावना विनय है-जिसका स्वरूप इस प्रकार से है-(साहम्मिए विषयो पजियव्यो) अपने समान धर्मवालों में जो दीक्षा पर्याय की अपेक्षा ज्येष्ठ हैं उनमें विनय वृत्ति रखनी चाहिये। तथा ( उवगारणपारणासु विणओ पजियव्यो) स्व और पर के उपकार करने में और पारणा करने में विनय रखना चाहिये, संयम की आराधना करना यह निज का उपकार करना है और ग्लान आदि अवस्था में अन्य साधु का वैचात्य आदि करना यह पर का उपकार करना है, तपस्या का पारणा करना अथवा श्रुत के पार पहूँचना यह पारणा है इन दोनों स्थितियों में मृदु स्वभाव से रहना यही उपकारण पारणा का विनय करना है। इसी तरह (वायणपरियदृणासु ) सूत्र की वाचना में और उसके परिवर्तन करने में स्वाध्याय वे सूत्र।२ पायी भावना मतावे -" पंचमं साइम्मिएसु" त्याह " पंचम" मा प्रतनी पायभी माना विनय छ, २४ २५३५ २१॥ प्रभारी छ.-" साहम्मिएसु विणओ पजियव्यो" पोतानी सभी सीमारे દક્ષા પર્યાયની અપેક્ષા એ મેટા હોય તેમના પર વિનયવૃત્તિ રાખવી જોઈએ. तया " स्वगारणपारणासु विणओ उउंप जिययो" स्व भने ५२न। ५४॥4 કરવામાં અને પારણાં કરવામાં વિનય રાખવો જોઈએ. સંયમની આરાધના કરવી તે પિતાને ઉપર ઉપકાર કર્યો ગણાય છે અને ગ્લાન આદિ અવસ્થામાં અન્ય સાધુઓનું વૈયાવૃત્ય-વૈયાવંચ-કરવી તે પરના ઉપર ઉપકાર છે. તપનું પારણું કરવું અથવા કૃતને પાર પહોંચવું તે પણ પારણું છે. એ બને સ્થિતિમાં મૃદુ સ્વભાવથી રહેવું તે જ પારણાને વિનય કરવાની રીત छ. १ शते “ वायणपरियणासु" सूत्रनी वायनामा भने तेनु परिवर्तन ४२वाभां-स्वाध्याय ४२वामा साधु “विण पजियचो , 41 For Private And Personal Use Only
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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