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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रश्नव्याकरणसूत्रे अलियं १, कित्तीए लाभस्स वा कएण लुद्धो लोलो भणेज्ज अलियं २, इड्डीए सोक्खस्स वा कएण, लुद्धो लोलो भणेज्ज अलियं ३, भत्तस्स पागस्स वा कएण, लुद्धो लोलो भणेज्ज अलियं ४, पीढस्त फलगस्स वा कएण, लुद्धो लोलो भणेज्ज अलियं ५, सेज्जाए संथारगस्स वा कएण, लुद्धो लोलो भणेज्ज अलियं ६, वत्थस्स पत्तस्स वा कएण, लुतो लोलो भणेज्ज अलियं ७, कंबलस्स पायपुंछणस्स वा कएण, लुद्धो लोलो भणेज्ज अलियं ८, सोसस्स सोसणीए वा कएण, लुद्धो लोलो भणेज्ज अलियं ९, अन्नेसु एवमाइसु बहुसु कारणसएसुलुद्धो लोलो भणेज्ज अलियं १० तम्हा लोहो न सेवियवो, एवं मुत्तीए भाविओ भवइ अं. तरप्पा संजयकरचरणनयणवयणो सूरोसच्चज्जवसंपन्नो॥६॥ टाका-' तइयं ' तृतीयां भावनामाह- लोहो न सेवियब्यो' लोभो न सेवितव्यः । लोभसेवनेन किं भवेत् ? इत्याह-'लुद्धो ' लुब्धो लोभयुक्तो नरो 'लोलो' लोला=वश्वलापन् 'अलियं ' अलीक-फूटभवन भणेज्ज' भणेत्= कथयेत् । केन निमित्तेन लुब्धोऽलीकं भणेत् ? इत्याह- खेत्तस्स' क्षेत्रस्य __ अब सूत्रकार तृतीय भावना जो लोभनिग्रह रूप है उसे प्रकट करते हैं-'तथं लोहो' इत्यादि । टीकार्थ-( तइयं ) लोभ निग्रहरूप तृतीय भावना इस प्रकार से है(लोहो न सेवियव्यो) लोभ सेवन करने योग्य नहीं है। क्यों कि (लुद्धो लोलो अलियं भणेज्ज) लोभ के सेवन करने से प्राणी लुब्ध कहलाता है, और वह लोभ युक्त बना हुआ मनुष्य चञ्चल चित्त होकर वे सूत्र वोलनिय नामनी श्री भावना वर्णन ४२ छ “तइयं लोहो" ७. --" तइयं " सोनिश्र३॥ त्री लावना ॥ प्रभारी छ-" लोहो न सेवियव्वो" साल सेवन ४२वाने योग्य नथी. ४२६३ ॐ “लुद्धो लोलो अलियं भणेज्ज" होलन सेवन ४२वाथी ll यु"५ ४उपाय छ, भने ते बोलत भनुष्य यया. चित्तवाणी नेट क्यान मोदी श , “खेत्तस्स वत्थुस्स For Private And Personal Use Only
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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