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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुदर्शिनी टीका अ० १ सू०५ अहिंसाप्राप्तमहापुरुषनिरूपणम् ५९३ आहार लेने का अभिग्रह धारण कर उसकी गवेषणा करते हैं वे अन्तवरक हैं । तथा प्रान्तचरक वे मुनिराज हैं जो पुराने वल, चणक एवं कुली आदि अन को लेने का अभिग्रह बद्ध होकर गोचरी करते हैं। तथा जो रूक्ष भोजन ही मैं लूंगा, इस प्रकार की प्रतिक्षा धारण करते हैं। जो ऊँचे नीचे कुलों में सामान्य रूप से भिक्षा ग्रहण करने के स्वभाववाले होते हैं वे समुदानचरक हैं अन्नलायक - अन्नसे, अर्थात् afra faशेष के कारण वासी अन्न खाने से ग्लान अर्थात् कृशदुपले जो है वे अवग्लायक हैं। भिक्षा विशुद्धि के सिवाय जो मौनव्रतको धारण कर आहार के लिये जाते हैं वे मौनचरक साधु हैं। तथा जिनका ऐसा कल्प होता है कि जो आहार हमें संसृष्ट-भरे हुए हाथ और भाजन - पात्र से दिया जावेगा बही मैं लूंगा वे संसृष्ट कल्पिक हैं। तथा - तज्ज्ञानसंसृष्ट कल्पिक वे मुनिजन हैं जो इसप्रकार का नियम लेते हैं कि जिस प्रकार का द्रव्य देने योग्य है वह उसी प्रकार के द्रव्य से संसृष्ट हस्त भाजन से दिया जावेगा तो ही लेगें । जो इस प्रकार का नियम धारण करते हैं कि दाता ने जिस आहार को अपने आप अपने पास खाने के लिये रखा होगा वही हम लेगें। इस प्रकार के अभिग्रह वाले પ્રાન્તવ મુનિરાજ તેમને કહે છે કે જેએ જૂનાં વાલ, ચણા, કળથી આફ્રિ અન્ન લેવાને અભિગ્રહ કરીને ગોચરી કરે છે. તથા જે એવી પ્રતિજ્ઞા ધારણ रे छेडे हु' ३क्ष (यु) लोक्न ४ शितेभने रूक्षचरक उडे छे. એક સરખી રીતે ઊંચા તથા નીચા કુળમાં ભિક્ષા ગ્રહણ કરવાના સ્વભાવવાળા छे तेथे समुदानचरक छे. अन्नलायक - मास अलिश्रहने भो वासी भन्न ખાવાથી ગ્લાન એટલે કે કુશ-દુઃખા પડી ગયેલાં હેાય તેમને અન્નગ્લાયક કહે છે. ભિક્ષા વિશુદ્ધિના સિવાય, જે સાધુ મૌનવ્રત ધારણ કરીને આહારને માટે જાય છે તેમને મૌનર કહે છે. તથા જેમના એવા નિશ્ચય-ધારણા होय छे " ने आहार अभने संसृष्ट-लरेसा हाथ तथा भाजन पात्रमांथी महेशवाशे ते अर्धशु" मेवा भुनियाने संसृष्टकल्पिक डे छे. तथा જે મુનિજને એવા પ્રકારના નિયમ કરે છે કે વહેારાવવાનું જે દ્રવ્ય હોય તે એજ પ્રકારના દ્રવ્યથી ભરેલ પાત્રમાંથી વહેારાવવામાં આવશે તેા જ લઇશ, ते भुनिनाने तज्जातसंसृष्टकल्पिक डे छे. ने भुनिनो मेव। नियम धारण કરે છે કે દાતાએ પેાતે જ પાતાને ખાવા માટે જે આહાર પેાતાની પાસે राज्यो होय ते ? हुं साश मा अमरना अलियड धारी भुनियो। उपनि प्र० ७५ For Private And Personal Use Only
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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