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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७४ प्रश्नव्याकरणस्त्रे चरएहि अण्णगिलाइएहिं मोणचरएहि संसट्रकप्पिएहिं तज्जायसंसट्टकप्पिएहिं उवनिहिएहि सुद्धेसणिएहि संखादत्तिएहिं दिटुलाभिएहिं अदिठ्ठलाभिएहिं आयंबिलिएहिं पुटुलाभिएहिं आयंबिलिएहिं पुरिमड्डिएहिं एकासणिएहिं निविइएहि भिन्नपिंडवाइएहिं परिमियपिंडवाइएहिं अंतहारेहि पंताहारेहिं अरसाहारेहिं विरसाहारेहिलूहाहारेहिं तुच्छाहारेहिं अंतजीविहिं पंतजीविएहि लहजोविहिं उवसंतजीविएहिं पसंतजीविहिं विवित्तजीविहिं अखीरमहसप्पिएहिं अमज्जमसासिएहि पडिमट्ठाइएहिं ठाणुकडिएहि वीरासणिएहि सजिएहिं डंडायइएहिं लगंडसाईहि एगपसिएहिं आयावएहि अवाउडएहिं अणि?यएहिं अकंडुयएहि धुयकेसमंसुलोमनहेहि सव्वगायपडिकम्मविप्पमुक्केहि समणुचिन्ना, सुयधरविदियत्थकायवुद्धिणो धीरमइबुद्धिणो य जे ते आसीविसउग्गतेयकप्पा निच्छयववसाय पजत्तकयमइया णिच्चं सज्झायज्झाणा अणुबद्धधम्मज्झाणपंचमहव्वयघ. रित्तजुत्ता, समिया समिईसु, समियपावा,छविह जगवच्छला, निच्चमप्पमत्ता, एएहिं अन्नेहि य जा सा अणुपालिया भगवई ॥ सू० ४ ॥ टीका-' एसा भगवई ' इत्यादि 'एसा भयवई अहिंसा' एषा भगवती अहिंसा-एषा पूर्वोक्ता भगवती पूजनीया सर्वज्ञप्ररूपिताऽहिंसैव सम्यगहिंसाऽस्ति, न तु सर्वज्ञे तरकल्पिता । 'जा' की है, तथा सेवा की है उन महापुरुषों को प्रकट करते हैं-'एसा भगबई' इत्यादि। टीकार्थ- एसा भगवई अहिंसा) यह क्ति भगवति अहिंसा सर्वज्ञ द्वारा प्ररूपित अहिंसा-ही सची अहिंसाहै, सर्वज्ञ से भिन्न इतर ४१ छ ते महापुरुषाना नाम प्राट ४२ छे–“ एसा भगवई " त्यादि साथ-"एसा भगवई अहिंसा" मा पूर्वात सती अडिस-सज्ञ द्वा२॥ પ્રરૂપિત અહિંસા જ સાચી અહિંસા છે, સર્વજ્ઞ સિવાયના બીજા છમસ્થ For Private And Personal Use Only
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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