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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५१२ प्रश्नध्याकरणसूत्रे ' असंतोसेत्ति वि य ' असंतोषः ३०, इत्यपि च 'तस्स' तस्य-परिग्रहस्य 'एयाणि ' एतानि 'एवमादि' एवमादीनि-उक्तपकाराणि ' नामधेज्जाणि' नामधेयानि नामानि - हुंति , भवन्ति ' तीसं ' त्रिंशत् । परिग्रहत्य परिग्रहायसंतोषान्तानि त्रिंशन्नामधेयानि भवन्तीत्यर्थः । अनेन — यन्नामेती' द्वितीयमन्तरद्वारमुक्तम् ।।०२।। अथ यथा ये परिग्रहं कुर्वन्ति तानाह-तं चपुणे' इत्यादि मूलम्--त च पुण परिग्गहं ममायंति लोभघत्था भवणवर विमाणवालिगो परिग्गह रुईयी परिग्गहे विविहकरणबुद्धी देवनिकाया य असुरभुयगसुवन्नविज्जुजलण-दीव-उदहि दिसि-पवण-थणिय-अणपन्नियपणपन्निय इसियाइय भूयवाइय कंदिय महाकदिय कुहण्ड पतंग देवा पिसाय-भूय-जक्खरक्खर-किंनर किंपुरिस-महोरगगंधव्याय तिरियवासी। पंचनाम आसक्ति है २९ । परिग्रही जीव को जीवनभर सुखप्रद संतोष नहीं होता है अतः असंतोषका हेतु होने से इसका नाम भी असंतोष. है ३० । इस प्रकार इस परिग्रह के ये पूर्वोक्त प्रकार से तीस नाम हैं। इस तरह इस सूत्र द्वारा सूत्रकार ने “यनाम" यह द्वितीय अन्तरद्वार कहा है। भावार्थ---परिग्रह नामके पंचम आस्रव द्वार के कितने नाम गुण निष्पन्न हो सकते हैं यह बात सूत्रकार ने इस सूत्र द्वारा प्रदर्शित की है। परिग्रह से लेकर असंतोष पर्यन्त जो ये तीस नाम प्रकट किये हैं वे कहीं तो कारण में कार्य के उपचार से और कहीं कार्य में २ कारण के उपचार से बनाये गये हैं, ऐसा जानना चाहिये ॥ मू० २ ॥ डापायी तेनु नाम ' आसक्ति' छ. (३०) ५रीबडी ने वनभर सुमन सतिष थते! नथी, तेथी असताना १२१३५ हावाथी तेनु नाम 'असंतोष' છે. આ પ્રમાણે પરિગ્રહના પૂર્વોક્ત ત્રીસ નામ છે. આ રીતે આ સૂત્રદ્વારા सूत्रारे ‘यन्नाम' नामना भी मन्त२ द्वा२नु थन यु छ. ભાવાર્થ–પરિગ્રહ નામના પાંચમા આસવ દ્વારા ગુણ પ્રમાણે કેટલાં નામ હોઈ શકે છે તે બાબત સૂત્રકારે આ સૂત્રમાં દર્શાવી છે. પરિગ્રહથી લઈને અસંતોષ સુધીના જે ત્રીસ નામે પ્રગટ કર્યા છે તેમાનાં કેટલાક કારણમાં કાર્યના ઉપચારથી અને કેટલાંક કાર્યમાં કારણના ઉપચારથી બનાવવામાં आस छ, मेम समन्वानु छ । सू-१॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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