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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रश्नव्याकरणसूत्रे स्वभावः १३, 'महट्टी' महातिः, महातःकारणत्वात् १४, ' उवकरणं ' उपकरण सामग्री १५, “संरक्षणय' संरक्षणा च-शरीरादीनां संरक्षणमित्यर्थः १६, 'भारो' भारः-अष्ट कर्मभारकारणम् १७, 'संपायुपायगो' संपातोपायक:-संपातानादुर्गतौ प्रस्थितानाम् उपायको मार्गभूतः१८, 'कलिकरंडो' कलिकरण्ड:-कलीनां= कलहानां करण्ड इवपात्रविशेष इव कलिकरण्डः १९, 'पवित्थरो' प्रविस्तरःधनधान्यादिविस्तारः २०, 'अणत्यो ' अनर्थः-अनर्थकारणत्वात् २१, 'संथवो' है, इसलिये यह परिग्रह लोभात्मा लोभ स्वभाव है १३ । इस परिग्रह से जीव को बड़ी से बड़ी आर्तियों का सामना करना पड़ता है अतः उन आर्तियों का करण हाने से यह परिग्रह महार्तिरूप है १४। इस परिग्रह के प्रभाव से ही विविध प्रकार की सामग्री जीव एकत्रित करता है अतः इसका नाम उपकरण है १५ । परिग्रही जीव अपनेशरीर आदि पदार्थों की रक्षा करने में विशेष सावधान रहता है । इसलिये इसका नाम संरक्षण है १६ । परिग्रही जीव के परिणामों की संक्लेशता के कारण अष्टविध कर्मों का बंध बहुत तीव्र होता है इसलिये इसका नाम भार है १७ । परिग्रही जीव का पतन दुर्गति में होता है अतः दुर्गति में पतन होने का यह मार्गभूत है इसलिये इसका नाम संपातोपायक है १८ । परिग्रही जीव के अनेक शत्रु उत्पन्न हो जाते है हर एक के साथ कलह आदि होने लगते हैं इसलिये यह परिग्रह कलहों का एक प्रकार का करण्डपिटारा है-इसलिये इसका नाम कलहकरण्ड है १९ । परिग्रही जीव अपने धन धान्य आदि पदार्थो का विस्तार करने પરિગ્રહ લેભાા લેભ સ્વભાવ છે. (૧૪) આ પરિગ્રહને લીધે અને મોટામાં મોટી આફતને સામને કરે પડે છે, તેથી એ આર્તિ (આફતો) નું કારણ હેવાથી તે પરિગ્રહ મહાતિરૂપ છે (૧૫) તે પરિગ્રહના પ્રભાવથી જ વિવિધ પ્રકારની साभश्री ५ त्रित ४२ छ, तेथी तेनु नाम' उपकरण ' छ. (१६) परियडी જીવ પિતાના શરીર આદિ પદાર્થોના રક્ષણ માટે વધારે સાવચેત રહે છે, तथी तेनु नाम 'संरक्षण' छे. (१७) परियडी पनी वृत्तिमानी मथितતને કારણે અષ્ટવિધ કર્મોને બંધ ઘણે જ તીવ્ર હોય છે, તેથી તેનું નામ 'भार' छे. परिडी 4 दुतिमा ५ छ. तिभा पतन ४२११ाना २३३५ हावाने १२ तेनुं नाम 'संपातोपायक' छ. (१८) परियडी अपना અનેક શત્રુઓ પેદા થાય છે. દરેકની સાથે તેને કલહ આદિ થયા કરે છે. તે કારણે ને પરિગ્રહ કલહોના એક પ્રકારના કરંડિયા જેવો હોવાથી તેનું નામ 'कलहकरण्ड' छ. (२०) परियड ७१ पोताना धन धान्य हि पदार्थाना For Private And Personal Use Only
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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