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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir છ૭૮ प्रश्नव्याकरणसूत्रे सदृशी-प्रधानशङ्खतुल्या च ग्रीवा यासां तास्तथा ' मंसलसंठियपसत्थहणुया' मांसलसंस्थितपशस्तहनुकाः = मांसला-पुष्टः संस्थितः = सुसंस्थानयुक्तः आम्रफलाकारः प्रशस्त सुन्दरो हनु:-ओष्ठाधोभागो यासां तास्तथा । 'दालिमपुप्फप्पगासपीवरपलंघकोचिय वराधरा - दाडिमपुष्पमकाशपीवरमालम्बवराधरा-तत्र-दाडिमपुष्पपकाशः = दाडिमपुष्पसमपभो रक्त इत्यर्थः, पीवरः = पुष्टः मालम्बः = ईपल्लम्बमानः कुश्चितः = वलितः वरः = भशस्तोऽधरो यास तास्तथा' मुंदरोत्तरुट्ठा' सुन्दरोत्तरोष्ठा-सन्दरउत्तरोष्ठउपरितन ओष्ठो यासां तास्तथा ' दधिदगरयकुंदचंदवासंतिमउलअच्छिदविमलदसणा । दधिदकरजः कुन्दचन्द्र वासन्तीमुकुलाछिद्रविमलदशनाः तत्र-दधिदकरजः = जलबिन्दुः कुन्दा पुष्पविशेषः चन्द्रः प्रतीतः वासन्तीमुकुला वासन्तीनामक पुष्प कुड्मलश्च इत्येतेः सदृशाः शुक्लाः अछिद्राः अविरलाः सुमिलिता दशनाः दन्ताः यासां तास्तथा 'रत्तुप्पलरत्तपउमपत्तसुकुमालतालुजीहा' रक्तोत्पलरक्तपद्मपत्र मुकुमारतालुजिहाः सरिसगीवा ) इनकी गर्दन चार अंगुल की तथा प्रधान-उत्तम शंख के जैसी होती है । ( मंसलसंठियपसस्थहणुया ) इनके ओष्ठ का अधोभाग रूप दाढी मालल-मजबूत पुष्ट, संस्थित-आम्र फल के जैसी सुन्दर आकार वाली और प्रशस्त-सुहावनी होती है। (दालिमपुप्फप्पगासपीवर. पलंवकोचियवराधरा) इनका अधरोष्ठ दाडिम-अनार के पुष्य के समान लाल वर्ण वाला होता है। पीवर-मांसादि से भरा हुआ होने के कारण पुष्ट होता है। तथा प्रालम्ब-कुछ २ लम्बासा रहता है । कुश्चितवलित एवं प्रशस्त होता है । ( सुंदरोत्तरुट्टा ) जिनके ऊपर का ओष्ठ सुन्दर होता है। ( दधिदगरयकुंदचंदवासंतिम उलअच्छि इविमलदसणा) इनके निर्मल दाल-दही, जलबिन्दु, कुंदपुष्प, चन्द्र, वासन्ती पुष्पकी कली, इनके जैसे शुभ्र होते हैं । विरले नहीं होते हैं किन्तु अविरलपरस्पर में मिले हुए रहते हैं। (रत्तुप्पलरत्तपउमपत्तसुकुमालतालुजीहा) सा२ मinnी तथा उत्तम शमवी साय छे. “ मंसल संठियप सत्थहणुया" તેમના હોઠના નીચેના ભાગરૂપ દાઢી માંસલ મજબૂત, સંસ્થિત–આમ્રફળના सपा सु२ मारवाणी मने प्रशस्त सु२ डाय छे. “दालिगपुःफ पगासपीवरपलं बको चियवराधरा" भने। अचशष्ठ दाउमाना इसवी सास गनी, પુષ્ટ, તથા સહેજ લંબાયેલો રહે છે. તે અરેષ્ઠ કુંચિત વળે અને उत्तम डाय छे "सुंदरोत्तरुट्टा" तेमने। 8५२। 18 सुदर डाय छे. “ दधिदगरयकुंदचंदवासतिम उलअच्छिद्धविमलदसणा " तमना निमiतडी , જળબિંદુ, કુંદપુષ્પ, ચન્દ્ર અને વાસન્તી પુષ્પની કળી, જેવા સફેદ હોય છે. તે દાંત છૂટા છૂટા હતાં નથી પણ પરસ્પરમાં મળીને આવેલા હોય છે. " रत्तुप्पलरत्तपउमपत्त सुकुमालतालुजीहा " तेभर्नु त भने स साल For Private And Personal Use Only
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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