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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३४ प्रश्नव्याकरणसूत्रे वियसंत-विचितवणमाल रइयवच्छा अहसयविभत्तलक्खणपसत्थसुंदर - विराइयंगुवंगा मत्तगयवरिंद-ललिय - विक्रम विलसिय-गईकडिसुत्तकनील पीय-कोसेज्जवाससा पवरदित्ततेया सारयणवथणिय-महुरगंभीर--निद्धघोसा नरसीहा सीहविकमगई अत्थमिय पवररायसीहा सोम्मा वारवई पुण्ण चंदा पुवकयतवप्पभावा निविट्ठसंचियसुहा अणेगवास सयमाउठवतो भज्जाहियजणवयप्पहाणाहिं लालियंता अउल-सदफरिस-रसरूवगंधे य अणुभवित्ता ते वि उवणमंति मरणधम्म अवितित्ता कामाजं ॥ सू० ८॥ टीकाः-- 'ताहिय ' ताभिश्च वक्ष्यमाणविशेषणविशिष्टाभिश्चामराभिरुक्षिप्यमानाभिः सुख शीतलवातवीजितागावलदेववासुदेवाः, इति सम्बन्धः । कथम्भूताभिश्चामराभिः ? इत्याह-- 'पवरगिरिकुहरविहरणसमुद्धियाहिं ' प्रवरगिरिकुहरविहरणसमुद्धृताभिः प्रवरगिरिणां यानि कुहराणि गहराणि तेषु यद् फिर वे कैसे होते हैं सो कहते हैं-' ताहि य' इत्यादि। टीकार्थ:-- (ताहि य उक्खिप्पमाणाहिं चामराहिं सुहसीयलवाय वीइयंगा) इन वक्ष्यमाग विशेषणों से विशिष्ट ढोले गये चामरों की सुखप्रद शीतल वायु से जिनका अंग वीजित होता रहता है ऐसे बलदेव और वासुदेव भी काम से अतृप्त ही मरण को प्राप्त करते हैंऐसा संबंध यहां भी लगा लेना चाहिये। अब सूत्रकार चामरों के विशेषणो को स्पष्ट करते हैं -- ( पवरगिरिकुहरविहरणसमुद्धियाहिं ) जब चमरी गाय उत्तम पर्वतों को गुफाओं में विचरण करती हैं तब वह ७ तसा ॥ य छ तेनुं वधु वरान मरे 2-" ताहिय" ४त्याहि. 1-"ताहि य उक्खिप्प माणाहिं चामराहिं सुहसीयलवायवीइ यंगा' मा પ્રમાણેના વિરોષણોવાળા, ચામરોવડે ઢળવામાં આવતાં આનંદદાયક શીતળવાયુ વડે જેમના અંગે વાયુનું સેવન કરી રહેલાં છે એવા તે બળદેવ અને વાસુદેવ પણ કામગથી અતૃપ્ત રહીને જ મૃત્યુને પંથે પળે છે. એ સંબંધ અહીં પણ સમજી લેવો. હવે સૂત્રકાર ચામરેનાં વિશેષણેની સ્પષ્ટ કરે છે. " पवरगिरिकुहरविहरणसमुद्धियाहिं" ल्यारे यमरी आय उत्तर पचतानी For Private And Personal Use Only
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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