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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org सुदर्शिनी टीका अ० ४ सू०६ बलदेववासुदेवस्वरूपनिरूपणम् ४१३ 1 + बालघणघणसंचया नानामणिकनकरत्नमौक्तिकमवालधनधान्यसञ्चयाः, तत्र नानाविधा मणय: = चन्द्रकान्तादयः कनकानि = सुवर्णानि रत्नानि = कर्केतनादीनि मौक्तिकानि = मुक्ताफलानि मवालानि = ' मूंगा ' इति प्रसिद्धानि धनानि गणिमादीनि, तत्र गणिमं - गणयित्वा यद्दीयते तद्वस्तु गणिममित्युच्यते नालिकेर पूगीफलादिकम् एवं धरिमं यत्तुलायां धृत्वा दीयते तत् सुवर्णरजतादिकम्, मेयंकुडवेन - मानविशेषेण 'पायली ' इति प्रसिद्धेन परिमीय यद्दीयते तत्, शालीगोधूमादिकम्, परिच्छेयं परीक्ष्य यद्दीयते तत् रत्नवखादिकम् धान्यानि शालियवा दीनि तेषां सञ्चयाःराशयो येषां ते तथा 'रिद्धसमिद्धकोसा' ऋद्धि समृद्धकोशा:= विविधसम्पत्तिपूर्णभाण्डागाराः 'हयगयरहसहससामी हयगजरथसहस्रस्वामिनः स्पष्टम् । "गामागरणगर खेड कब्बडमवदोणमुहपणाऽऽसमसंवाह सहस थिमियनिष्पमुइयजण विविह-सस्सनिष्फज्जमाणमेइणि सरसरियतलाणिकणग-रयण-मोतिय पवालघणघण्णसंचया) चन्द्रकान्त आदि नानो प्रकार के मणियों की, सुवर्ण की, कर्केतनादि रत्नोंकी, मुक्ताफलों की, मुंगाओं की, तथा धन-गणिमादि, तथा गणिम-गिनकर दी जानेवाली नालिकेर पूगीफल आदि वस्तुओं की, तथा घरिम-तुला से तौल कर दी जानेयोग्य सुवर्ण रजत आदि द्रव्योंकी, तथा मेय-कुडव 'पायली' नापके नामविशेष सेनापकर दिये जानेयोग्य शालि गोधूम आदि अनाजोंकी, तथापरिच्छेद्यपरीक्षा करके दी जानेयोग्य रत्न वस्त्र आदि चीजों की तथा धान्य शालि यब आदि धान्यों की इनके यहां राशि रहा करती है । तथा - (रिद्धसमिद्ध कोसा) विविध संपत्ति से इनका भाण्डागार (भंडार) पूर्ण भरा रहता है। तथा (हयगयरहसहस्सलामी ) हयों के घोड़ों के, हाथियोंके एवं रथों के ये स्वामी होते हैं। (गामागरण गरखेड कच्चडमडंबदोणमुहपट्टणासम कणगरयणमोत्तिय पवालघणघण्णसंचया " ચન્દ્રકાન્ત આદિ વિવિધ મણી मोनो, सुवर्णाना, मुतनाहि रत्नानो, साया भोतीनो, भुंगाखानी, तथा, ધન-ગણિમાદિન, (ગણિમ-ગણીને અપાતી નાળિયેર પૂગીફળ આદિ વસ્તુઓને) धरिभने। ( “ धरिम – त्रानवाथी लेणीने भायवा योग्य सुवर्ण, यांही आ द्रव्य ) भेय-फुडवनो ( " पायसी " ( भायु) साहिथी लरीने आपवा योग्य ચેાખા, ઘઉં આદિ અનાજ ) પરિચ્છેઢ—પરીક્ષા કરીને આપવા યેગ્ય રત્નવસ્ત્ર આદિ ચીજોને, તથા ધાન્યના ( ચેાખા જવ આદિ અનાજને ) તેમને ત્યાં ભંડાર ભરેલ હાય છે. તથા " रिद्धिसमिद्धकोसा " विविध संपत्तिथी તેમને! ભંડાર સદા ભરપૂર હાથી અને રથેના તેએ 66 રહે છે. તથા અધિપતિ હાય છે Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only ' " हयगयरह सहरससामी ” घोडा, (6 गामागरण गरखेड कडमडब
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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