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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९२ प्रश्नव्याकरणसूत्रे मूलम् –जंबू ! अबभं च चउत्थं सदेवमणुयासुरस्स लोयस्त पत्थणिज्जं पंकपणगपासजालभूयं इत्थीपुरिसनपुंसगवेदचिहं तवसंजमबंभचेरविग्धं भेदाययणबहुपमादमूलं कायरकापुरिससेवियं सुयणजणवजणिज्ज उड्ड-नरयतिरिय तिलोकपइटाणं जरामरणरोगसोगबहुलं वधबंधविघायदुविघायं दंसणचरित्तमोहस्स हेउभूयं चिरपरिचियं मणुगयं दुरंतं च उत्थं अहम्मदारं ॥ सू०१॥ टीकाः-हे जम्बूः ! 'चउत्थं ' चतुर्थ हिंसामृषाऽदत्तादानापेक्षया चतुर्थमास्रवद्वारम् 'अबभं च ' अब्रह्म अकुशलं कर्म तच्चेह मैथुनम्-अधर्महेतुत्वेन सकलानर्थजनकत्वात्। चकारः पुनरर्थः कीदृशं तदित्याह- सदेवमणुयासुरस्स लोयस्सपत्थणिज्ज' सदेवमनुजासुरस्य लोकस्य मार्थनीयं देवमनुष्यासुरलोकस्य प्रार्थनिरूपण करना चाहते हैं । अतः सर्व प्रथम वे क्रम प्राप्त "यादृश" इस द्वार को लेकर अब्रह्म के स्वरूप का निरूपण करते हैं- 'जंबूअबंभ' इत्यादि। ___टीकार्थ-श्रीसुधर्मा स्वामी जंबूस्वामी से कहते हैं कि हे जंबू ! (चउत्थं) हिंसा, मृषा एवं अदत्तादान इन तीन की अपेक्षा यह चतुर्थ आस्रव द्वार (अवंभं च ) अब्रह्म है। यह अब्रह्म अकुशल कर्म हैं और वह यहां स्वरूप से गृहित हुआ है। क्योंकि यह अधर्म का हेतु होने से सकल अनर्थों का जनक होता है। अब सूत्रकार इसी अब्रह्मका आगेके विशेषणों द्वारा विशेष स्पष्टीकरण करते हैं, वे कहते हैं कि-यह अब्रह्म-मैथुनसेवनरूप अकुशल कर्म भने छ. तेथी सोथी पसा ते अनुभ मावत " यादृश " ५ नामना द्वारने ने माना २१३५नुं नि३५४४ ४रे छे. “जंबू अबभ" त्याह ___ -श्री. सुधा स्वामी यू स्वाभान ४ छे ! “चउत्थ" હિસા, મૃષા અને અદત્તાદાન એ ત્રણની અપેક્ષાએ ચોથું અધર્મ દ્વાર " अबभं च" मग्री छ. ते मयाही अयोग्य इत्य छ भने ते ही भैथुन३ये જે ગૃહિત થયેલ છે, કારણ કે તે અધમનું કારણ હોવાથી સઘળા અનર્થનું ઉત્પાદક છે. હવે સૂત્રકાર એ જ અબ્રહ્મનું આગળ આવતાં વિશેષણો દ્વારા વિશેષ સ્પષ્ટીકરણ કરે છે, તેઓ કહે છે કે-તે અબ્રહ્મ-મૈથુન સેવનરૂપ પાપકર્મ For Private And Personal Use Only
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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