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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org सुदर्शिनी टीका अ० ३ सू० १९ संसारसागरस्वरूपनिरूपणम् , कर्माणि तान्येव ये प्रस्तराः सागरावाणरूपास्तैः कृत्वा 'तरंगरिंगंत ' तरङ्गरिङ्गत् = तरङ्गै= कल्लोलै: रिङ्गत्=चलत् ' निच्चमच्चुभयतोयपठ्ठे ' नित्यमृत्युभयतोयपृष्ठ = नित्यं = ुवं मृत्युभयं = मरणभयमेव तोयपृष्ठं=जलोपरितनभागो यत्र स तथा तं महापाषाणाद्याघातोत्थितमहातरङ्गचञ्चलजलौघमृत्युभयसङ्गलः सागरी यथा भवति तथा संसारोडापे भर्त्सनापमाननादि नानादुःखफलपदज्ञानावरणादि क्लिष्टकर्मपाषाणसमुत्थित पुनः पुनर्जन्मजरामरण भयतरङ्गव्याप्त इत्यर्थः । ' कसायपायाल - कलससंकुलं' कपायपातालकलशसङ्कलं = रूपायाः = क्रोधादयत्वारस्ते एव पातालकलशास्तैः सङ्कुलो यः स तथा तं, 'भवसय सहस्स जलसंचयं भवशतसहस्रजलसञ्चयं=भवशतसहस्राण्येवजलसञ्चयः = जलराशियेत्र स तथा तम् अनंत ' " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कर्मरूप पाषाणों से उठी हुई, (तरंगरिंगंत ) तरंगों से जो चंचल बना हुआ है, तथा जो (निच्च मच्चुभय) अवश्यंभावी मृत्यु के भयरूप ( तोयपठ्ठे ) जलके उपरितन भाग से युक्त हो रहा है, अर्थात् जिस प्रकार समुद्र महापाषाणों आदि के आघात से उत्थित महातरंगों से चंचल तथा जल से भरा हुआ होने के कारण मृत्यु के भय से संकुल होता है उसी तरह संसार भी भर्त्सना अपमान आदि ननादुःखरूप फलको देने वाले क्रिष्टकर्मरूप पाषाणों से समुत्थित बारंबार जन्म, जरा, मरण, के भयरूप तरंगों से व्याप्त हो रहा हैं । ( कसायपायाल - कलससंकुलं ) तथा यह संसार सागर क्रोधादिक चार कषायरूप पाताल कलशों से युक्त है ( भवसयस हस्सजल संचय ) लाखों भवरूप जलसंचय से यह युक्त है | ( अनंतं) अनन्त संसारी जीवों की अपेक्षा यह अन्त " (6 " यहि सिट ३५ पाषाणोथी पेहा थयेस " तरंग रिंगंत " तर गोथी ने संयण અનેલ છે, તથા જે निच्चमच्चुभय अवश्य लावी ( ४३२ धनाश ) मृत्युना लय३यी “ तोयपट्टं " भणना उपरितन लागथी युक्त हो, सेवा संसार સાગરમાં તે પરિભ્રમણ કર્યા કરે છે- એટલે કે જેમ સમુદ્ર મહાપાષાણા આદિના આઘાતથી ઉત્પન્ન થયેલ તરગાથી ચંચળ ખનેલ હોય છે તથા પાણીથી ભરપૂર હાવાને કારણે તેમાં પડનારને માટે મેાતના પણ ભર્ટ્સના અપમાન આદિ વિવિધ દુઃખરૂપ ફળ પાષાણાથી ઉત્પન્ન થતાં, વારંવાર અનુભવાતા જન્મ, જરા, મરણુ આદિના ભયરૂપ તરંગાથી વ્યાપ્ત છે कसायपायलकलस संकुल સાગર ધ આદિ કષાયરૂપ પાતાળ કળશોથી યુક્ત છે. संचयं " साजो लव३५ भणस अयथी ते युक्त छे. ભય રહે છે તેમ સસાર દેનારા કલષ્ટ ક રૂપ તથા આ સસાર (6 अनंतं " For Private And Personal Use Only ' ܕܕ (6 भवसय सहरसजल મનન્ત સસારી
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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