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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३४२ प्रश्नव्याकरणसूत्रे इति भाषा प्रसिद्धस्तेन वाद्यमानेन सह राजपुरुषै नीयमानाः सन्तो घट्टिताः = वेष्ट्यादिभिस्ताडिताः मार्यमाणा इत्यर्थः, 'कूडग्गहगाढख्दनिसिद्धपरामट्टा ' कूटग्रह गाढरुष्ट निसृष्टपरामृष्टाः = तत्र कूटग्रहत्वात् = कूटेन उलप्रपञ्चेन चौरस्य परधनग्राहित्वाद गाढरुष्टे:- अतिक्रुद्धैः राजपुरुषैः निसृष्टा : अपहृतधनाः, निर्धना इत्यर्थः, पुनः परामृष्टा च = गृहीता ये ते तथा 'बज्झकर कुडिजुय निवसिया' बध्य करकुटीयुगनिवसिताः वध्यानां यत् करकुटोयुगं निन्द्यवस्त्रविशेषद्वयं तन्निवसितं परिधाषितं येषां ते तथा वध्यवज्रधारिण इत्यर्थः, 'सुरतकणवीरगदियविमुकुलकंठे गुणलज्झदूय आविद्धमलदामा ' सुरक्तकणवीरग्रथित विमुकुलकण्ठे Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रहता है और जब जिसका शूलारोपण का होता है तब वह बजता है अतः शूलारोपण आदि संकेत का सूचक होने से वह खरपरुब - अत्यंत कठोर माना गया है, जैसे ही वह बजाता है कि राजपुरुष उस वध्य व्यक्ति को साथ में लेकर चल देतें हैं । और रास्ते में वे उनचोरों को वेत्र - यष्टयादि से ताडित भी करते जाते हैं । ( कूडा हगाढ रुट्ट निसि परामट्ठा) ये राजपुरुष उन चोरों पर ( कूडग्गह ) छलप्रपंच से परधन को अपहरण करने के कारण ( गाढरुड) अत्यंत रुष्ट हो जाते हैं, और इसी से ( निसिड) अपहृत द्रव्य को छीन भी लेते है, और बाद में उन्हें (परा - मट्ठा) पकड़ लेते हैं (बज्झकर कुडि जुयनिवसिया ) जब वे शूली पर उन्हें चढाने के लिये ले जाते हैं तो इसके पहिले उन्हें वे वच्यपुरुषों को ( वज्झकर कुडिय) पहिराने के योग्य निंद्य दो वस्त्र ( निवसिया ) पहिरा देते हैं (सुरतकणवीरगहिय विमुकुल कंठे गुणवज्झ दूय आविद्ध ܕܕ = જ્યારે કોઇને શૂળી પર ચડાવવાના સમય થાય છે ત્યારે તે વગાડવામાં આવે છે. તેથી શૂલારાપણુ આદિ સ`કેત દર્શાવનાર હોવાથી તેને સરવણ અત્યંત કુઠાર કહેલ છે. જેવો તે ઢાલ વાગે છે, કે તે રાજપુરુષો તે વષ્ય વ્યક્તિને લઈને ઉપડે છે, અને રસ્તામાં તે લોકો તે ચોરેને સોટી, લાકડી આદિથી इटारे छे. कूडग्गहगाढ रुडुनिसिटू परामट्ठा " ते राभ्पुरुषो ते थोरो पर 4: CL कूडग्ग्रह " छपटथी परघननुं हर उखाने सीधे " गाढरुटु અત્યંત छोघे लराय छे, अने तेमनी पासेथी ते बोओ "निसिट्ठ ” ચોરેલાં દ્રવ્યને छीनवी पशु से छे, भने पछी तेभने “ परामट्ठा " पहडी से छे. " वज्झकरकुडिजुयनिवसिया " જ્યારે તેઓ તેમને શૂળીએ ચડાવવા લઇ જાય છે ત્યારે વધ્ય પુરુષાને પહેરાવવા वज्झकरकुडिय લાયક, એ નિંદ્ય વસો "निवखिया" तेभने डेशवे छे "सुरतकणवीरगद्दियविमुकुलकंठे गुणव 66 For Private And Personal Use Only "
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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