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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुदर्शिनी टीका अ० ३ सू० ११ कीदृशाश्चौराः कीदृशफलं लभन्ते ! ३३९ शयनीयवस्तुदानमित्युभयोर्भेदः पादपतनं प्रणामादिना चौराणां सत्कारसम्मानकरणम् १०, आसनम् आसनदानं ११, गोपनं नाऽनेन चौयं कृतं स्वगृहे स्थापयित्वा नास्त्यत्रेति वा कयनेन चौर सङ्गोपनं १२, खण्डस्य खादनं-चौरेभ्योमिष्टानादिदानं १३, तथाऽन्यन्मोहराजिकम् लोकप्रसिद्धया परराष्ट्रे गत्वा वस्तु विक्रयः १४, तथा ज्ञानपूर्वकं='चोरोऽय' मिति बुद्धिपूर्वकं पाद्याग्न्युदकरज्जूनां प्रदान मार्गगमनश्रमापनोदार्थ पाचं पादाय हितमुष्णतैलजलादि, तस्य दानं १५, पाकाद्यर्थमग्निदानम् १६, उदकदान-पानार्थ जलदानं १७, तथा चोरीतगोमठहराना-विश्राम देना इसका नाम विश्राम है ९। शन्यादान और विश्राम में अन्तर केवल इतना ही है कि शय्यादान तो दूसरी जगह ठहरने पर भी दिया जा सकता है परन्तु विश्राम अपने घर में ही दिया जाता है ९ । चौरों के चरणों पर गिरकर उनका आदर सत्कार करना इसका नाम पादपतन है १० । बैठने को आसन देना यह आसनदान है ११ । “ इसने चोरी नहीं की है, घर में होने पर भी घर में चोर नहीं है " इस प्रकार कह कर चोर की रक्षा करना इसका नाम गोपन है १२ । चोरों के लिये खाने को मिष्टान्न आदि देना इसका नाम खण्ड खादन है १३ । नाका बंदी होने पर दूसरे स्थान में, अथवा लोक प्रसिद्धि से परराष्ट्र में एकदेशसे ले जाकद दूसरे देशमें बेचना इसका नाम मोहराजिक है १४ । “ यह चोर है " ऐसा जानकर भी उसे पद्य, अग्नि, उदक, रज्जु देना, पैरों की थकावट मिटाने के लिए गर्म जल तैल आदि का देना पद्य है १५ । भोजन बनाने के लिये अग्नि देना १६ । ચોરેને પિતાના ઘરમાં આશ્રય આપે તેને વિશ્રામ કહે છે. શય્યાદાન તથા વિશ્રામમાં તફાવત એટલે જ છે કે શય્યાદાન તે બીજી જગ્યાએ રહે તે પણ આપી શકાય છે. પણ વિશ્રામ પિતાના ઘરમાં જ અપાય છે. (૧૦) योराने य२णे नभीने तेनो मा६२ स४।२ ४२यो, तेथे पादपतन छ, (११) मेसथाने भासन मा५यु, तेने आसनदान ४ छ, (१२) “ ! भासे ચોરી કરી નથી, ઘરમાં ચોર છુપાવ્યો હોય છતાં પણ ચોર ઘરમાં નથી ” એ પ્રમાણે કહીને ચોરની રક્ષા કરવી, તેને જોવા કહે છે. (૧૩) ચોરેને भावाने भाटे भिष्टान्न पु, तेने खण्डखादन ४ छे. (१४) ना.धी डापा છતાં બીજી જગ્યાએ અથવા એક દેશમાંથી લઈ જઈને બીજા દેશમાં માલ वेययो, तेने मोहराजिक 3 छ. (१५) “ । यो२ छ" मेवी मण२ डापा छतi ५ तेने ५५, मनि, Ges (riel), २०१४ (३२) हे ते पान ચોરીના જ પ્રકારે છે, પગને થાક દૂર કરવાને માટે ગરમ પાણી, તેલ આદિ For Private And Personal Use Only
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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