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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra દ www.kobatirth.org प्रश्नव्याकरणसूत्रे 6 'पगडपडागउच्छियधय वे जयंती चामरचलंतछत्तंधयारगंभीरे ' प्रकटपताको च्छ्रितध्वजवैजयन्तीचामरचलच्छत्रान्धकारगम्भीरे = तत्र प्रकटाः- दूरस्था अपि दृश्यमाना याः पताकाः = विशालपताकाः उच्छ्रिताः = अत्युध्वंस्थिताः ये ध्वजाः लघुपताकाः वैजयन्त्यश्च = विजयपताका तथा चामराणि चलन्ति छत्राणि च तैः कृतेनान्धकारेण गम्भीरे गहने तथा 'हयहेसियहत्विगुलगुला इयरघणघणाइयपाइक हरहराइय आफोडियसीहनायछिलिय विद्युत कटुकं कय सह भीमगज्जिए ' तत्र ' हयहेसिय हयहेषितं = दयानाम् = अश्वानां देषितं =शब्दितं 'हत्यिगुलगुलाइय' हस्तिगुलगुलायितं हस्तिनां = गजानां गुलगुलायितं = गुलगुलशब्दः ' रहघगवगाइय' रथवगवनायितं = धावतां स्थानां घनघनेति शब्दः तथा पाइकहरहराइय' पदाति हरहरायितं = पदातीनां सैनिकानां हरहरेति शब्दितं ' आकोडिय ' आस्फोटितं = बहुपरिस्फोटनं 'सोहनाय ' सिंहनादः सिंहस्येव शब्दकरणं 'छिलिय' सष्टितं = सीत्कारकरणं से (आडोविए) जो आडंबर युक्त बना हुआ है । (पगड ) दूर रहने पर भी इयान ऐसी (पडान ) विशाल पताकाओं से, ( उच्छिय ) ऊँची की हुई ऐसी (ध) लघुपताकाओं से, ( वेजयंती ) वै जयन्ती - विजयसूचक ऐसी ध्वजाओं से, तथा ( चामर ) चामरों से एवं ( चलतछत्त ) चंचलछत्रों से किये गये (अंधधार) अंधकार से जो (गंभीरे) गहन हो रहा है, तथा जहाँ (हसिय) घोड़ों की हिनहिनाटके शब्द हो रहे हैं, (हथिगुलगुलाइय) हाथियों की गुरगुलाहट हो रही है, ( रहघणघणाइय) इधर उधर दौड़ते हुए रथों का जहां घनघनाट शब्द हो रहा है, (पाइकहर हराइय) पदातियों की जहां हर हराट' हरहर' इस प्रकार को तुमुल ध्वनि हो रही है. (आकोडिय) वीर अपनी भुजाओं का जहां आस्फालन कर रहे हैं - फटकार रहे हैं, सीना ܕܐ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (C पडाग વિશાળ પતાકાઓથી, લઘુપતાકાઓથી, बेजयंती " દૂર દૂર હાવા છતાં પણ નજરે પડતી એવી " उच्छिय " उंची राभेदी मेवी " 22 धय विश्य सूयम् ध्वन्नमोथी, तथा “चामर" यामरोथी भने “चलंतछत्त" अथण छत्रोथी अशयेस " अंधयार " अधारथी ? ' गंभीरे" गडुन था गयुंछे, तथा न्यां “हयहेसिय” घोडाओनी हुए इलाटीनो भाषान थर्ड रह्यो छे, "हन्थिगुलगुलाइय " હાથીએ ની ગુલગુલાહટ થઇ રહી છે, " रण बनाइय श्थोनो धणुधार ल्यां यासी रह्यो छे, “ पाइक हरहराइय જ્યાં હર હરાટ 66 હર હર ” એ પ્રકારના ભયંકર ધ્વનિ " आकोडिय " यां वीरो पोत पोतानी मुलगी माझान उरी रह्या छेसीहनाय સિંહના જેવી ગર્જના જ્યાં થઇ રહી છે, 66 આમ તેમ દોડતા " पहाती - पायदानो ચાલી રહ્યો છે, ईटारी रह्या छे " For Private And Personal Use Only ) सिंह के जैसी जहां י, , 46
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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