SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 329
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रश्नव्याकरणसूत्रे उरसा-वक्षःस्थलेन सह शिरोमुखाः-उर्ध्वमुखा बद्धाः कण्ठे ग्रीवायांतोणा: चूणीराः 'तरकस' इति तीरभाता' इति वा भाषाप्रतीता यैस्ते तथा एतादृशा नृपाः गच्छन्ति संग्रामे इत्याह – ' पासियवरफलगरइयपहकरसरमसखरचावकरकरंचियमुनिसियसरवरिसबड्डुकरकमुयंतघणचंडवेगधारानिवायमग्गे , पाशितवरफलकरचितपकरसरभसखरचायकरकराश्चितसुनिशितशरचर्पटद्धकरकमुच्यमानधनचण्ड वेगधारानिपातमार्गे-तत्र ' पासिय ' इति स्पृष्टानि = हस्ते धृतानि वरफलकानि-परशस्वमहारप्रतिरोधकशस्त्राणि — ढाल ' इतिमसिद्धानि यैस्ते, तथा रचितः कृतो रिपुशस्त्रप्रतिघातार्थ 'पहकर ' इति प्रकरः = रचनाविशेषेण सैन्यसमूहो येस्ते, तथा सरभसाः महर्षाः सवेगा वा खरचापकरा:-निष्ठुरधनुः कंठतोणा ) इनके वक्ष्यस्थल पर तूणीर-तरकस-बांधा जाता है, इनमें उर्ध्वमुख करके वाणग्रीवा के पास भरे रहते हैं । इस प्रकार से पहिले सज्जित होकर कितनेक राजा संग्रामभूमि में युद्ध करने के लिये (अइवयंति ) उतरते हैं । इस प्रकार से यहां संबंध लगा लेना चाहिये। जिस युद्ध में राजा उतरते हैं वह युद्ध किस प्रकारका होता है ? सो कहते हैंजिस संग्रामभृमिमें (पासियवरफलग) निष्ठुर धनुर्धारीजन अपने ऊपरसे परके शस्त्रप्रहारोंको रोकने के लिये ढालोंको हाथों में लिये होते हैं, (रइयपकर ) शत्रु के शस्त्रों का प्रतिघात करने के लिये वे अपनी २ सेना को एक विशेष प्रकार की रचना में स्थापित किये हुए रहते हैं तथा ( सरभस ) परस्पर में युद्ध करने का चाव जहां आपसमें खूब चढ़ा बढ़ा होता है-हर्ष अथवा धेग से जो युक्त होते हैं ऐसे (चावकर) धनुर्धारियों " उरसिरमुहबद्धकंठतोणा" तेमना पक्ष-५॥ ५२ तू०॥२-माथा liधेटा डाय छे. તે ભાથામાં બાણ ઉર્ધ્વમુખ રહે તેમ, ડેકની પાસે ભરેલાં રહે છે. આ રીતે पi Rare याने 213 राय युद्ध ४२वाने भाटे २शुभहानमा “ अइवयंति" तरी ५ छ, मे प्रारना समय ही समय मेवानी छ.२ યુદ્ધમાં રાજા ઉતરે છે તે યુદ્ધ કેવું હોય છે? તેના જવાબમાં કહે છે– रे शुभहानमा “पासियवरफलग' निहय धनुर्धामा हुश्मनाना शस्त्र प्रहाशने शबाने माटे पोताना डायमा दास रामेछ, तथ! "रइयपहकर" शत्रुना शस्त्रोनी મુકાબલો કરવાને માટે તેઓ પિતાપિતાની સેનાને એક વિશિષ્ટ પ્રકારની વ્યુહ રચनामांवे , तथा “सरभस" अन्योन्य सवाना ज्या भू५ २३ छ. ७५ अथवा वेगथी युतीय छे ! “चावकर" धनुर्धारीमा ! rii “कर चि For Private And Personal Use Only
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy