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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७२ प्रश्नव्याकरणसूत्रे 'अहिमरा' अभिमराः धनादिलोभेन मरणाभिमुखाः, मरणभयरहिता इत्यर्थः, अथवा चौर्याभिमुखाः सन्तः परान् मारयन्ति ये ते तथा इहान्तर्भावितण्यर्थः, 'अणभंजगा' ऋणभकाः ऋणं मअन्ति=न ददति ये से तथा 'भग्गसंधिया ' भग्गसन्धिका भग्नः सन्धिः-मित्रादिस्लेहो यैस्ते तथा इष्टजनप्रेमवर्जिताः 'रायदुट्टगारी' राजदुष्टकारिणः राजनीतिविरुद्धाचरणाः 'विलयनिच्छूढलोगवज्झा' विषयनिक्षिप्तलोकवाह्या विषयात् जनपदात् निक्षिप्ताः निष्कासिताः अत एवं लोकवाद्याः जनहिभूताः । उद्दहगगामघायगपुरघायगपंथघायगआदीवगतित्थ भेयगा' उद्रोहक ग्रामघातक-पुरघातक-पथिघातक-ऽऽदीपकतीथभेदकाः तत्र उद्रोहकाच-हिंसकाः ग्रामघातका ग्रामनाशकाः, पुरघातका नगरविध्वंसकाः पथिये परद्रव्य में विशेष लोलुप होते हैं । ( अहिमरा ) धनादिक के लोभ में पड़कर ये मरण के भी अभिमुख रहते हैं-इन्हें मरण का भय नहीं होता है । अथवा चौर्य कर्म में प्रवृत्ति करने पर दूसरों को भी उस समय बाधा डालने पर मार डालते हैं । ( अणभंजगा) इनके ऊपर किसी का कर्जा हो तो भी ये उसे नहीं देते हैं। (भग्गसंधिया) ये अपने इष्ट मित्रादिकों से भी प्रेन नहीं करते हैं। उन पर स्नेह करने से अथवा उनके स्नेह से ये वर्जित रहते हैं । ( रायबुङगारी ) राजनीति के विरुद्ध इनका सदा आचरण रहता है । (विसयनिच्छूढलोगवज्झा) जनपद से ये निकाल दिये जाते हैं, इसलिये ये लोकबाह्य होते है । (उद्दहगगामघायगपुरवावगपंथघावगआदीवगतित्थभेयया ) ( उद्दहग ) ये बड़े भारी द्रोही होते हैं जिनपर इनकी वक्रदृष्टि पड़ जाती है उसकी फिर कुशल नहीं। ( गामघायग) गांवों के गांव नष्ट कर डालते हैं। ( पुर घायग ) नगरों ते। ५२द्रव्यमा अतिशय सोप हाय छे “अहिमरा” पनादिना सोममा ५हीने તેઓ મરણની પણ સ-મુખ રહે છે-તેમને મતની બીક લાગતી નથી. અથવા शोरी ४२वा त तमा माजीसी ३५ थनारने मारी ना छ.." अणभंगा" तेमनी पासे नसोय तो ते! ते युवता नथी. “भगसंधिया"तेमा પિતાના ઈષ્ટ મિત્રાદિ તરફ પણ પ્રેમ રાખતા નથી, તેમના પર સ્નેહ રાખવાથી मा तेमनी रने प्रात ४२वाथी ते २हित डायछ. “रायदुदुगारी” २४ नीतिया विरुद्धतेनु भायण शा२३." विसयनिच्छूढलोगवझा" जन्यमयी तमने sizी वामां आवे छे तेथी तमा ४ हाय छे. “ उद्दहगगामघायगपुरघायगपंथमायगआदीवगतित्थभेयया " " उद्दहग” तेरा मारे द्रोही जाय छ, मना ५२ तमनी ष्टि ५ छ तेभनी सलामती २३ती नथी. " गामघा. यगा" तेमा गाभान भी नष्ट ४२री नामेछ. “पुरघायग" नगरोनी नाश For Private And Personal Use Only
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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