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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुदर्शिनी टीका अ० ३ सू० २ अदत्तादाननामनिरूपणम् नाम उत्क्षेप है २०१ चोर इस द्रव्य को ले जाकर असुरक्षित अवस्था में इधर उधर रख देते हैं-डाल देते हैं, इसलिये इसका नाम विक्षेप है २१॥ चोर चुराकर जब इस द्रव्य को विभाग करते हैं, तब तुलादिक से कमती बढ़ती तौलते हैं-एक सा हिस्सा नहीं करते हैं, इसलिये इसका नाम कूटता है २२ । यह कर्म करनेवालों के कुलों को कलंक लगता है इसलिये इसका नाम कुलमधी है २३। अदत्तादानमें परके द्रव्यको हरण करने में तृष्णा रहती हैं इसलिये इसका नाम कांक्षा है २४ । चोर गहित जल्पना करते हैं, अर्थात् चोरी करलेने पर भी “ मैंने चोरी की है" इस बात को स्वीकार नहीं करते प्रत्युत उसे छुपाने की ही चेष्टा करते हैं, तथा जिस समय ये चोरी करने के लिये चलते है तो किसी अपने इष्ट की प्रार्थना करके ही चलते हैं, इसलिये इसका नाम लालपन और प्रार्थना है २५ । यह कृत्य विनाश का हेतु होने से विनाशरूप एवं समस्त आपत्तियों का कारण होने से व्यसनरूप है इसलिये इसका नाम आशंसना एवं व्यसन है २६ । परधन के हरण करने की अभिलाषा इसमें बनी रहती है इसलिये इसका नाम इच्छा, तथा पर के धन को हरण करने के लिये इसमें अत्यंत मूर्छाभाव होता है इसलिये इसका नाम मृग है २७ । अप्राप्त द्रव्य की प्राप्ति की वाञ्छा तथा प्राप्त द्रव्य की अविनाशेच्छा, ये दोनों अदत्तादान का हेतु हैं-इसलिये इसका नाम ચોરના હાથમાં જાય છે, તેથી તેનું નામ છે. (૨૧) ચાર તે દ્રવ્યને ચોરી જઈને અસુરક્ષિત હાલતમાં ગમે ત્યાં મૂકી દે છે. તેથી તેનું નામ વિક્ષેપ છે. (૨૨) ચોર ચોરી કર્યા પછી જ્યારે તેના ભાગ પાડે છે ત્યારે ત્રાજવા આદિથી વધારે કે ઓછું તાલે છે-એક સરખા ભાગ પાડતા નથી, તેથી તેનું नाम कूटतो छ (२३) २१॥ ४त्य ४२नारना शुगने ४६४ सागे छे, तेथी तेनु नाम कुलमपी छ. (२४) मतदान अडएर ४२वामi onनु द्र०य हरी सेवानी तृ॥ २ छ, तेथी तेनु नाम कांक्षा छे. (२५) यो२ पाडत २६५ना ४२ छ, એટલે કે ચોરી કર્યા પછી પણ પિતે ચોરી કરી છે, તે વાતને સ્વીકાર કરતે નથી, પણ તેને છૂપાવવાનો પ્રયત્ન કરે છે, તથા જ્યારે તેઓ ચોરી કરવા ઉપડે છે ત્યારે પિતાના કેઈ ઈષ્ટ દેવની પ્રાર્થના કરીને જ જાય છે તેથી તેનું नाम लालपन अने प्रार्थना छे. (२६) ते कृत्य विनाशनु ।२९५ पाथी विना. શરૂપ અને સઘળી આપત્તિનું કારણ હોવાથી વ્યસનરૂપ છે, તેથી તેનું નામ आशसना अने व्यसन छ. (२७) ते कृत्य ४२नारने ५२वननु २९ ४२पानी અભિલાષા રહે છે, તેથી તેનું નામ રૂછ તથા પારકાનું ધન ગ્રહણ કરવાની For Private And Personal Use Only
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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