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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - सुर्शिनी टीका भ० ३ सू० १ अइतादानस्वरूपनिरूपणम् २५९ -'हरदहे 'त्यादि-- 'हरदहमरणभयकलुसतासमपरसंतगगिज्झलोभमूलं' हरदहमरणभयकलुषत्रासन परसत्कगृद्धिलोभमूलं, तत्र हर-हरणं कुरु, दह-गृहादिकं प्रज्वालय, इति वचनद्वयं हरणदाइविषये चोराणां प्रवृत्तिकारकम् । तथा मरणं मृत्युः भयं भीतिः कलुपं च-पापं तैस्त्रसवं-भय जननस्वरूपं यस्य तत्तथा, तच्च परसत्कदिलोभ मूलं च-परसत्के-परकीयधने मृद्धिा आसक्तिः तथा लोभश्च-रौद्रध्यानयुक्तामूर्छा मूलं कारगं यस्य तत्तथा 'कालविसमसंसियं कालविषमसंश्रितं च-काल: अर्धरात्रादिलक्षणः, विषमाणि पर्वतादिदुर्गमस्थानानि तैः संश्रितम् = आश्रितं यत्तत्तथा । एतादृशेषु निर्जनस्थानेषु चौराः प्रायो निवसन्ति । तथा ' अहोअच्छितादान है । यह कैसा होता है ? इस पर कहते हैं-यह अदत्तादान (हरदहमरणभयकलुस तासणपरसंगगिज्झलोभमूलं ) (हर) इसके द्रव्य का हरण करलो, ( दह) इसके गृहादिक को जलादो, ( मरण ) इसे मार डालो, इत्यादि रूपसे ( भय ) भय दिखाकर दूसरों के द्रव्यादि का हरण करना, ( कलुस ) एक दूसरों में कलुषभाव जगाकर उनके द्रव्यादिक को ले लेना, (तासण) इत्यादि अनेक प्रकारसे त्रास पहुँचाना, तथा (परसंतग ) दूसरों के धन में (गिन्झि ) आसक्ति रखना तथा (लोभ) रौद्रध्यानसे युक्त इसमें मूर्छाभाव रखना, ये सब (मूलं ) अदत्तादान के मूल कारण है । ( कालविसमसंसियं) अर्धरात्र आदि काल तथा विषम-पर्वतादि दुर्गमस्थान. इनके द्वारा यह अदत्तादान संश्रितआश्रित होता है-बनता है, तात्पर्य इसका यह है कि जो अदत्तादानचोरी-किया करते हैं, वे चोर प्रायः अर्धरात्रि के समय में निकलते हैं, एवं पर्वतादि दुर्गम स्थानों पर छिपे रहते हैं, इस अपेक्षा काल और तो तेना याममा ४ छ-ते महत्तहान " हरदहमरणभयकलुसतासणपरसंतगगिझलोभमूलं” “हर" "240 व्यतिर्नु द्रव्य ५७वीस “दह" तेना ५२ माहिने सावी हो, “ मरण" तेने भारी नाम" त्याहि शते "भय" मय मतावान मन्यनुं द्रव्य वस्त्र आदि हुरी से, "कलुस" मे मील पथ्ये प्रवेश गान तमना द्रव्य माहिने ससे, " तासण" त्याशित त्रास पायावी, तथा “ परसंतग" oultant घनमा “गिल्झि” मासहित राणवी तथा “लोम" शैद्रध्यानथी युक्त भूभाप तमा राव. ते वां " मूलं ” महत्ताहानना भू रणे! छे. “ कालविसमसंसियं" अशी माहि કાળ તથા પર્વતાદિ દુર્ગમસ્થાન તે અદત્તાદનનાં આશ્રય સ્થાને છે, એટલે કે જે અદત્તાદાનચોરી કરે છે. તે ચેર સામાન્ય રીતે મધ્યરાત્રે ચોરી કરવા નિકળે છે, અને પર્વતાદિ દુર્ગમ સ્થાનમાં છૂપાઈ રહે છે, તે અપેક્ષાએ કાળ For Private And Personal Use Only
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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