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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०६ प्रश्नव्याकरणसूत्रे उवहणंता - मित्तलत्ताई सेवइ । अयंपि लुत्तधम्मो | इमो वि वीसंभघायओ, पापकम्मकारी अगम्मगामी । अयं दुरप्पा बहुसु य पातगेसु जुत्तो चि । एवं जंपति मच्छरी भगे वा गुणकित्तिनेहपरलोगनिष्पिवासा । एवं एए अलियवयणदखापरदोसुपायण संसत्ता वेढेति अक्खइय बीएणं अप्पाणं कम्मबंधणेण मुहरी असमिक्खियप्पलावी ॥सू०॥८॥ टीका - अवरे = अपरे अन्ये केचित 'अम्माओ' अधर्मतः असत्यवचनरूपमधर्ममेव स्वीकृत्य ' रायदु ' राजदुष्टं नीतिविरुद्धम्, 'अभक्वाणं' अभ्याख्यानम् = असत्यदोषारोपणं ' अलियं ' अलीकं ' भणति ' = अकृतमपि कार्य कल्पयित्वा जनसमक्षे कथयन्ति । कथमित्याह - ' चोरोति' इत्यादिना - ' अचोरियं करेंतं ' औचार्य कुर्वन्तं = अचोरयन्तं जनं प्रति ' चोरोत्ति ' चोर इति कथयन्ति । 'एमेव ' और भी मनुष्य जिस प्रकार असत्य भाषण करते हैं उसीको दिखलाते हैं-' अवरे अहम्माओ ' इत्यादि । टीकार्थ - ( अवरे ) कितनेक मनुष्य ( अहम्माओ ) असत्य वचन - रूप अधर्म को ही स्वीकार करके (राय) नीति विरुद्ध (अभक्खाणं) असत्य दोषारोपणरूप ( अलियं ) अलीक वचन को ( भांति ) कहते हैं, नहीं किये गये भी कार्य को उसमें कल्पित कर जन समक्ष में कह दिया करते हैं कि ( अचोरियं करेतं चोरोन्ति ) चोरी नहीं करने वाले को भी 'यह चोर है' ऐसा कह देते हैं, अर्थात् जिसने कभी भी चोरी नहीं की है - ऐसे पुरुष को भी चोर देते हैं, कह तथा ( एमेव ) इसी ખીજાં મનુષ્ય પણ જે પ્રકારે અસત્ય ખેલે છે તે સૂત્રકાર બતાવે છે– " अवरे अहम्माओ " इत्यादि. " टीडार्थ - "अवरे” डेटाङ माणुसो' 'अहम्माओ" असत्य वचन अधर्मना १४ स्वीर उरीने “रायदुट्टु ” नीतिविरुद्ध " अव्भक्खाणं " असत्य होषारो ३५ “ अलिय " अली वयो "भणंति " अपना उरीने बोडअनी समक्ष उद्या रे . ચારી ન કરનારને પણ આ ચાર છે” પણ ચારી કરી હાય તેવા પુરુષને પણ ચાર हे छे, न उरायेस अर्यांनी यशु भडे- “ अचोरियं करेतं चोरोत्ति " (6 જેણે કિં (C તથા एमेव ' એવુ કહે છે એટલે કે તરીકે ઓળખાવે છે, For Private And Personal Use Only
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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