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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रश्नध्याकरणसूत्रे तेषां नास्ति फलमित्यग्रिमेण संवन्धः, तथा 'तवसंजमबंभचेरकल्लाणमाइयाणं तपः संयमब्रह्मचर्यकल्याणादिकानां, तत्र तपा=अनशनादिलक्षणं, संयमः= सावधानुष्ठानविरतिलक्षणः सप्तदशविधः, ब्रह्मचर्य-कामसेवनपरित्यागः, तान्येव कल्याणकारित्वात्कल्याण तदादिर्येषां ते-तथा तेषां फलं-कर्मक्षयसुगतिगमनादिकं, 'नत्यि' नास्ति, 'नवि' नापि 'पाणवहे ' प्राणवधः, 'अलियबयण' अलीकवचनं प्राणवधे मृषा भाषणे च न किमप्यशुभफलं भवतीत्यर्थः, तथा 'चोरिककरणं' चौरिक्यकरणं चौरिक्यस्य करणं-चौर्य-परद्रव्यहरणमित्यर्थः, परदारसेवनं-परस्त्रीगमनं वा न चैव पापजनक 'सपरिग्गहपावकम्मकरणंपि ' सप " आहार, तनुसत्कारा-ब्रह्म-सावद्यकर्मणाम् । स्यागः पर्वचतुष्टय्यां, तद्विदुःपौषधव्रतम् ॥१॥" इन पर्वचतुष्टय के दिनों में आहार, शरीर संस्कार, एवं अब्रह्म, आदि सावद्यकर्मों का जो त्याग कर दिया जाता है उसका नाम पौषधव्रत है ॥१॥ ____ इनका तथा (तवसंजमबंभचेरकल्लाणमाइयाणं ) कल्याणकारी अन शन आदि बारह प्रकार के बहिरंग अंतरंग तपों का सावद्य अनुष्ठान से विरति कारण करने रूप सत्रह प्रकार के संयम का तथा कामसेवन करने के परित्याग रूप ब्रह्मचर्य का ( नस्थिफलं) कर्मक्षय एवं सुगतिगमनादिरूप कुछ भी (नस्थिफलं ) फल नहीं होता है। इसी तरह (न वि य पाणवहे अलियवयणं) प्राणवध करने पर तथा अलीकभाषण करने पर कुछ भी अशुभ फल नहीं प्राप्त होता है । ( न चेव चोरिककरणं परदारसेवणं वा) चोरी करना , परस्त्री सेवन करना इनसे भी जीवों को कोई पाप नहीं लगता है क्यों कि पापरूप कोई वस्तु ही એ ચાર પર્વદિનોમાં આહાર, શરીર સંસ્કાર અને અબ્રહ્મચર્ય આદિ સાવધ કર્મોને ત્યાગ કરાય છે. તે વ્રતનું નાણુ પૌષધવત છે ના तेनुं तथा “ तवसंजमबंभचेरकल्लाणमाइयाणं " ४८या। मनशन આદિ બાર પ્રકારનાં બાહ્ય અને આંતરિક તપનું, સાવધ અનુષ્ઠાનથી વિરતિ ધારણ કરવા રૂપ સત્તર પ્રકારના સંયમનું, તથા કામસેવન કરવાના પરિત્યાગ३५ प्रायन “नथि फलं" भक्षय भने सुगति गमनाहि३५ ।५५५ " नस्थिफल" ५७. खातुं नथी. मे प्रमाणे " न वि य पाणवहे अलियवयणं " પ્રાણવધ કરતા, તથા અસત્ય બોલતા પણ કઈ અશુદ્ધ ફળ પ્રાપ્ત થતું નથી. " न चेव चोरिककरणं परदारसेवणं वा" यारी ४२वाथी, तथा ५२वी सेवन કરવાથી પણ જેને કઈ પાપ લાગતું નથી, કારણ કે પાપરૂપ કઈ વસ્તુ જ For Private And Personal Use Only
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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