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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रश्नव्याकरणसूत्रे शरीरं सादिकं सनिधनम् , शरीरम् आदिसहितम् उत्पत्तिमत्त्वात् , सनिधनं-सविनाशम् अन्तयत्वात् , ' इह भवे' अस्मिन् भवे प्रत्यक्षं जन्म, तस्मात् 'एगे भवे' एक एव भवः जन्म नान्यो लोकः, 'तस्स विप्पणासमि' तस्य विप्रणाशे सति तस्य शरीरस्य विनाशे सति 'सब्बनासोत्ति' सर्वनाशइति नाऽत्माऽवशिष्यते नाऽ पि च शुभाशुभरूपंकर्म । एवं उक्तरीत्या ' जंपति' जल्पन्ति कथयन्ति तज्जीवतच्छरीवादिनः । नास्तिकादारभ्य तज्जीवतच्छरीरवादिपर्यन्ताः सर्वे 'मुसावाई ' मृषावादिनः सन्ति ।। मू०४ ॥ पुनरप्याह-'तम्हा' इत्यादि। मूलम्--तम्हा दाणवयपोसहाणं तवसंजमबंभचेरकल्लाणमाईयाणं नस्थिफलं, नवि य पाणवहे अलियवयणं न चेव चोरककरणं परदारसेवणं वा सपरिग्गहपावकम्मकरणं पि शरीर को ही जो जीव मानने वाले हैं उनका ऐसा कहना है कि यह उत्पत्तिमान होने से सादि है और अन्तवाला होने से विनाशसहित है। ( इहभवे एगे भवे ) इस भव में जो इसका जन्म है वही इसका भव है, इसके अतिरिक्त और कोई दूसरा इसका भव-जन्म नहीं है, क्यों कि (तस्स विप्पणासम्मि सव्वणासोत्ति ) जब इस शरीर का विनाश हो जाता है तब इस जीव का सर्वनाश हो जाता है फिर इसका अस्तित्व ही नहीं रहता है, शुभ और अशुभ कर्म कुछ भी नहीं रहते हैं, ( एवं ) इस तरह नास्तिक वादी से लेकर शरीर को ही जीव मानने वाले ये सब ही मुसाबाई ) मृषावादी ( जंपंति ) कहते हैं । अर्थात् ये सब मृषावादी हैं ।। सू-४॥ જીવ માનનારા છે તેમનું એવું કહેવું છે કે તે ઉત્પત્તિવાળું હોવાથી સાદિ (माहि सहित) छ भने मन्तवाणु वाथी विनाश युत (सान्त) छ. " इह भवे एगे भवे " म भन्भमा २ तेना सन्म छे, ते ४ तनी ભવ છે, તે ઉપરાંત બીજે કઈ પણ તેનો ભવ–જન્મ નથી, કારણ કે " तस्स विप्पणासम्मि सव्वणासोत्ति" क्यारे 241 शरीरने। नाश थाय छे त्यारे આ જીવને પણ સર્વનાશ થઈ જાય છે–પછી તેનું અસ્તિત્વ જ રહેતું નથી, शुम भने पशु ४ ४४ ५४ २ नथी “ एवं" २ रीत नास्ति पाहीथी साई ने शरा२ने । मानना ते मधाने “ मुसाबाई " भृषापाही "जपति" छ. मेटले ते मधा असत्य पहनार छे. ॥ सू-४॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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