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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुदर्शिनी टीका अ० १ सू० ३९ तिर्यग्गति दुःखनिरूपणम् पृथक्करणानीत्यर्थः, 'निः' पूर्वकस्य 'स्' धातोः 'धाड' आदेशेकृतेऽपि पुननिरुपसर्गपूर्वकनिर्देशः पौनः पुन्यार्थसूचका, 'धमणाणि ' अग्नौ प्रक्षिप्य भस्वादिभि. र्धमनानि । दोहणाणि ' दोहनानि 'कुदंडगलबंधणाणि' कुदण्डगलबन्धनानि कुदण्डस्य चक्रकाष्ठस्य गले कण्ठे बन्धनानि 'वाडगपरिवारणाणि य ' वाटक परिवारणानि बाटके निरोधनानि 'पंकजलनिमज्जणाणि' पङ्कजलनिमज्जनानि पङ्कमयजले निमज्जनानि ब्रोडनानि 'वारिप्पवेसणाणि' वारिप्रवेशनानि-जलप्रक्षेपणानि ' ओवायनिभंगविसमणिवडणदवग्गिजालदहणाइयाई य' अवपातनिभविषमनिपतनदवाग्निज्वालादहनादिकनि च-अवपातेन=गर्तादिषु निपातेन यो निभङ्गः अङ्गोपाङ्गः भञ्जनम् , अपि च-विषमेभ्यः-विषमप्रदेशेभ्यो गिरिवृक्षादिभ्यो निपतनं, तथा दवाग्निज्वालाभिर्दहनं चेति द्वन्द्वः, तानि आदिपेषां तानि -खस्वजातियरोगातङ्कादीनि तान्येवम्पकाराणि दुःखानि प्राप्नुवन्ति ॥सू०३९॥ (धमणाणि य) अग्नि में प्रक्षिप्त करके भस्त्रा आदि से धोका जाना, ( दोहणाणि य ) स्तनों का दोहन होना, ( कुदंड गलबंधणाणि य ) कोठे वक्र-काष्ठ का गले में बांधा जाना-लटकाया जाना, ( वाडगपरिवारगाणि य ) कांटों आदि की बाड लगाकर किसी स्थानपर रोका जाना, ( पंकजलनिमज्जणाणि य ) पंक युक्त जल में फँस जाना, ( वारिप्पवेसणाणि य ) वारिप्रवेशन-बरसते हुए पानी में खड़े रहना अथवा तलाब वगैरह के पानी में हठात् प्रविष्ट कराया जाना, अथवा पानी में डूब कर मर जाना, ( ओवायणिभंगविसमणिवडण-दवग्गिजाल दहणाइयाइं य) किसी गर्त खड्डा आदि में गिर जाने से अंग उपांगों का टूट जाना, पर्वत आदि के ऊँचे स्थानों से गिर जाना, दावाग्नि में जल जाना, इत्यादि नाना प्रकार के दुःखों को तिर्यश्च गति के जीव भोगते हैं ।।मू. ३९ ॥ मनमा नभाने anglet२ सणिया मा 43 वीधापातुं, "दोहणाणि य" मायामाथी ६५ देवानु, “कुदंडगलबंधणाणि य " Amwi Alsi ८१८४१वानु, “ वाडगपरिवारणाणि य" imqat mi भूया पानु “ वारिप्पवेसणाणि य" पारि प्रवेशन-१२सता १२सामi SL २डवानु अथवा तणाव वगेरेना पाएमi 40 मरीथी प्रवेश ४२वानु. “ ओवायणिभंगविसमणिवडण -दवग्गिजालदहणाइयाइं य " 5 मा. माहिमा ५ पाथी 243 Sia તૂટી જવાનું, પર્વત આદિ ઊંચાં સ્થાને પરથી પડી જવાનું, દાવાગ્નિમાં બળી જવાનું, ઈત્યાદિ વિવિધ પ્રકારનાં દુખે તિર્યંચ ગતિના છે ભગવે છાસ રૂલા For Private And Personal Use Only
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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