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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir অস্ববান্ধা सर्वदेहः सकलशरीरं येषां ते तथा, 'विणियंगमंगा' विशुनिताङ्गोपाङ्गा = विशूनितानि नानाविधप्रहारैः संजातशोथानि, कलकलायमानजलसेचनेन समुत्पन्नस्फोटकानि वा अङ्गोपाङ्गानि येषां ते तथा, एवं परमाधामिकैः कर्थिताः सन्तो नरकजीवा महीतले कठोरनरकभूमौ विलोलंति' विलुलन्ति-विलुठन्ति ॥०३५॥ ततः किं भवती ? त्याह-' तत्थ य विग' इत्यादि । ___मूलम्-तत्थ य विग-सुणग-सियाल-काक-मज्जार-सरभदोविय-वियग्घ-सदल-सीह-दप्पिय-खुहाभिभूएहिं णिच्चकालमणसिएहिं घोरारसमाणभीमरूवेहिं अकमित्ता दढदाढा-गाढडक-कड्डिय-सुतिक्खनहफालियउद्धदेहा विच्छिप्पं ते समंतओ विमुक्कसंधिबंधणा वियंगमंगा कंककुररगिद्धघोरकट्टवायसगणेहिं य पुणो खरथिरदढणक्ख-लोहतुडेहिं ओवइत्ता पक्खाहयतिक्खणक्खविकिन्नजिब्भछियनयणनिदओलुग्गविगतवयणा उक्को. संता य उप्पयंता नियडंता भमंता ॥ सू०३६॥ टीका-तत्र च 'विग' वृकाईहामृगाः भेडिया ' इति प्रसिद्धाः रित हो चुका है ऐसे (विसूणियंगमंगा) तथा नाना प्रकार के प्रहारों से जिनमें सूजन आगई है, अथवा कलकलायमान क्षार जल के सिंचन से जिन पर फफोले पड़ गये हैं ऐसे अंग उपांग वाले वे नारकी जीव परमाधार्मिकों द्वारा कर्थित होकर ( महीतले ) नरक की कठोर भूमि पर ( विलोलंति ) लोटते हैं ॥ सू. ३५ ॥ इसके बाद क्या होता है ? इस बात को सूत्रकार प्रदर्शित करते हैं-'तत्थ य विग-सुणग' इत्यादि। टीकार्थ-(तत्थ य) उन नरकोंमें (विग-सुणग-सियाल-काक-मज्जारછે તેવા, અથવા કળકળતા ક્ષારયુક્ત જળ સિંચનથી જેમનાં અંગ ઉપાંગો પર ફેલા પડી ગયા છે. એવા નારકી જીવ પરમધામિર્ક દ્વારા યાતનાઓ. पाभीने “ महीतले " न२४नी ४२ भूमि ५२" विलोलंति" ५staय छे. ॥सू-34।। त्या२६ शु थाय छे. ते पात सूत्रा२ मतावे छ-" तत्थ य विगसुणग" त्यादि. टी -"तत्थ य" ते नरभा“विग-सुणग-सियाल-काक-मज्जार-सरम-दीविय For Private And Personal Use Only
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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