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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुदर्शिनी टीका अ० १ सू० ३१ वेदनापीडितनारकाकन्दनिर्घोषवणैनम् १९५ पाल' निरयपालाः परमाधार्मिकाः, तेषां तज्जियं' तर्जितं नारकजीवान् लक्षीकृत्य परस्परं तर्जनाज्ञावाक्यं वक्ष्यमाणप्रकारमस्ति, तथाहि-अम्बाभिधः परमाधामिकोऽम्बरीषं कथयति-हे अम्बरीप ! एनं पलायमानं पापिनं नारकं 'गेण्ह' गृहाण । एवं परस्परमेकः परमाधार्मिको द्वितीयं कथयति-एनं नारकं 'कम' क्रम पादपहारैः पीडय 'पहर' प्रहर-एनं नारकं दण्डादिभिस्ताडय 'छिंद' छिन्धि खङ्गादिभिः खण्डशः कुरु 'मिंद ' भिन्धि-मल्लकादिभिर्भेदय 'उप्पाडेह' उत्पाटय-शरीरात्वचादिकं पृथक्कुरु ' उक्खणाहि ' उत्खन=निष्कासय अक्षिगोलादिकम् 'कत्ताहि ' कुन्त छेदय-छुरिकादिभिर्नासिकादिकं, तथा-'विकत्ताहि' विकृन्त-कर्णनासिकादिकं मूलतश्छेदय, 'भंज' भञ्ज-हस्तपादादिकं त्रोटय, 'हण' जहि-शतघ्न्यादिभिरिय, 'विहण' विजहि-महाशिलादि पातनादिभिरनेकमकारैः अधिक भय उत्पन्न हो जाता है । इस प्रकार रसित, भणित, कूजित एवं उत्कूजित शब्द करने वाले उन परमाधार्मिकों की तजित-नारकियों को लक्ष्य करके जो परस्पर में कष्टादि पहुँचानेवाली बातचीत होती है वह इस प्रकार है-(गेण्ह ) अम्ब नाम का परमाधार्मिक अम्बरीष से कहता है-हे अम्बरीष! तू इस भागते हुए पापी नारकी को पकड लो और (कम) इस को लातों से मारों। बाद में (पहर ) इसे दंडों से खूब पीटो । (छिंद ) ज्यादा और क्या कहूं-तलवार आदि से इसके शरीर के खंड २ कर डालो। (भिंद ) भाला आदि से इसके शरीर को भेद् डालों ( उप्पाडेह ) इसकी खाल उतारलो, ( उक्खणाहि) इसकी आंखें निकाल लो, ( कत्ताहिय ) इसका नाक काट डालो (विकत्ताहि ) कर्ण नासिक आदि इन्द्रियों को मूल से बिलकुल साफ कर डालो। ( भंज) हाथ पैर आदि को मरोड डालो। (हण ) शतघ्नी आदि से इसको धुरी तरह से मारो। (विहण ) महाशिला आदि के ऊपर इसे पछार डालो। (विच्छुभ ) कुए आदि में इसे पटक दो। ( उच्छुभ ) કારણે નારકીઓને વળી વધારે ભય લાગે છે. એ રીતે રસીત, ભણિત. કજિત. અને ઉત્કૃજિન શબ્દ કરનારા તે પરમાધાર્મિકોથી તજિત-નારકીઓને ચીંધીને, તેમને કષ્ટ દેનારી પરસ્પરમાં જે વાતચીત થાય છે તે આ પ્રકારની હોય છે"गेण्ह " २५ नमन। ५२मायामि २५५रीषने ४ छ-" स री ! તું આ નાસી જતાં પાપી નારકીને પકડી લે અને “ઘ” તેને લાતો માર. पछी “पहर" तेने 1 43 धूम ३८१२ "छिंद” धारे शु ! तसवार આદિથી તેના શરીરના ટૂકડે ટૂકડા કરી નાખ. “મં” ભાલા આદિ વડે તેના शरीरने वीथी नाम. “उप्पाडेह" तेनी यामी 3तारी नin, "विकत्ताहि" आन, નાક આદિ ઈન્દ્રિયને મૂળમાંથી કાપી નાખે, “મંા” હાથ પગ આદિને મરડી नाम, "हण" शतनी मातेने भराममा भ७ शत भा, "विण" For Private And Personal Use Only
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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