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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुदशिनी टीका अ० १ सू० २१ मन्दबुद्धिया कान्२ जीवान् नन्ति ? १ 'वाहा' व्याधाः मृगघातकाः, 'कूरकम्मा ' क्रूरकर्माणः - दुष्टकर्मकारिणः, 'वाउरिया' वागुरिकाबागुरा-मृगबन्धनं तया चरन्ति ये ते वागुरिका:जालेन मृगवन्धकाः, 'दीविय-बंधणप्पभोग-तप्पगलजाल-चीरल्लगायसदन्भ वग्गुरा-कूड छलिया हत्या' द्वीपिक बन्धनप्रयोगतत्प्रगलजाल-चीरलगायसीदर्भवागुरा कूटछेलिकाहस्ताः-दीविय' द्वीपिका-व्याधस्य कृत्रिमा हरिणी या मृगाकपणार्थ स्थाप्यते 'बंधणपओग' बन्धनप्रयोगः मृगादि बन्धनोपकरणं, 'तप्प तप्तः मत्स्यग्रहणीलघुनौका, 'गलं बडिश मत्स्यवेधन कण्टक इत्यर्थः, 'जालं' प्रसिद्धं, वाले मनुष्य, (मच्छयंधा ) मत्स्यवंध-मछलियों को मारने वाले धीवर (साउणिया) शाकुनिक-पक्षियोंकी शिकार करने वाले चीड़ीमार, (वाहा ) व्याध-मृग की शिकार करने वाले वहेलियाजन, (कूरकम्मा) क्रूर कर्मा-दुष्टकर्म करने वाले मनुष्य, (बाउरिया) वागरिका-जाल से मृग को बांधने वाले वाघरी लोग, (दीविय-बंधणप्पओगताप-गल-जोल चीरल्लगा यस दन्भ-वग्गुरा-कूडछलिया हत्था ) द्वीपिका-व्याध द्वारा मृगों को लुभाने के लिये बनाई गई कृत्रिम हरिणी, बंधन प्रयोगमृगादि जीवों को बांधने के उपकरण, तप्र मछली पकड़कर जिसमें धीवर रखते जाते हैं ऐसी टोकरी, अथवा मछली जिस पर बैठकर पकड़ी जाती है ऐसी लघु नौका, गल-बडिश, बंशी जिसके अग्रभाग में आटा या जीव का कलेवर आदि लगाकर मच्छीमार उसे पानी में डाल देते हैं मछली जैसे ही उसे खोती है तो उसका वह नुकीला अग्रभाग उसके कंठ में विध जाता है, यस मच्छीमार फिर डोरे से बंधी कूरकम्मावाउरिया” “सोयरिया"सौ४२ि४- सुपरनो शि६।२ ४२॥२॥ मनुष्या, “मच्छबंधा" भत्त्या-भाछवियाने भा२ना२ भाछीमारी, " साउणिया " शनि-पक्षी-मोने शि:४२ ४२॥२ पा२धियो “वाहा ” व्याघ-मृगना शि२ ४२॥२ शिरोमो, "कूरकम्मा" २४ा-दुष्ट ४ ४२॥२॥ मनुष्यो, “वाउरिया " पाशु!ि--- otni भृगने सावना पारी , “ दीविय, बंधणप्पओगे तप्प, डाल, जाल, चीरल्लगा-यस, दम' वग्गुरी, कूडछलिया हत्था” दीपि-च्या द्वारा મૃગેને લલચાવવાને માટે બનાવેલી કૃત્રિમ હરિણી, બંધનપ્રયોગ-મુગાદિ જીને બાંધવાના સાધન, તપ્ર-મછલીને પકડીને માછીમાર જેમાં મૂકે છે તે ટેપલી, અથવા જેમાં બેસીને માછલાં પકડવામાં આવે છે તે નાની નૌકા, ગલ-બડિશ, બંશી-જેના અગ્રભાગ પર લટની કણેક કે અળસિયાં આદિ જીનાં કલેવર લગાડીને માછીમાર તેને પાણીમાં નાખે છે, માછલી જેવું તે ખાવા જાય છે. કે તરત જ તેને અણીદાર અગ્રભાગ તેના કંઠમાં પરોવાઈ જાય છે. प्र० ११ For Private And Personal Use Only
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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