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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुदशिनो टीका अ० १ ० १३ पृथिवीकाहिंसाकारणनिरूपणम् ॥ अथ पूर्व पृथिवीकायहिंसाकारणान्याह–'करिसण' इत्यादि। मूलम् करिसण-पोक्खरणी-वावि-वप्पिण-कूव सर-तलाग चिइ चेइय-खाइय-आराम-विहार-थूम-पागार-दार--गोउर अट्टालगचरिया सेउ-संकम-पासाय-विकप्प-भवण-घर-सरण लयण आवणवेइय-देवकुल-चित्त-सभा-पवा-आययण आवसह-भूमिघर-मंडवाणकए-भायणभंडोवगरणस्स य विविहस्स य अहाए पुढवि हिंसति मंदबुद्धिया ॥ सू० १४ ॥ टीका-'करिसण' इत्यादि । 'करिसण' कर्षण कृषिः 'पोक्वरिणी' पुष्करिणी समचतुष्कोणा कमलकाननकान्तिकमनिया पयःपूरपूरितपातालकुक्षितला नानाविधचित्रविचित्रपतस्त्रिकुलकूजितपुत्रितलिनमण्डलमण्डनसुरम्या, “वावि' १ 'केयारो वप्पिणं वप्पो' इति 'पाइअलच्छीनाममाला'। भावार्थ-जो आत्मबोध से विकल प्राणी हैं वे स्थावर और प्रस जीवों की नाना प्रकार के प्रयोजनों के वशवर्ती होकर विराधना करते हैं। पृथिवीकाय आदि स्थावर जीव हैं, क्यों कि इनके स्थावर नामकर्म का उदय है। द्वीन्द्रियादिक त्रस जीव हैं, क्यों कि इनके प्रस नामकर्म का उदय है । इसी कारण से स्थावर जीव अपनी इच्छानुसार एक स्थान से दूसरे स्थान पर चल फिर नहीं सकते हैं । त्रस जीव अपनी इच्छानुसार चल फिर सकते हैं । सू०१३॥ ___ अब सूत्रकार उन कारणों को कहते हुए प्रथम पृथिवीकाय की हिंसा के कारणों को कहते हैं-'करिसणपोक्खरिणी' इत्यादि। ___टीकार्थ- (करिसण) कृषि-खेती के निमित्त, (पोक्खरिणी) पोक्ख. ભાવાર્થ–જે પ્રાણીઓ આત્મબંધથી રહિત છે તેઓ સ્થાવર અને રસ જીની અનેક પ્રકારના પ્રયજનથી દેરાઈને હિંસા કરે છે. પૃથિવીકાય આદિ સ્થાવર જીવ છે, કારણકે તેમના સ્થાવર નામકર્મને ઉદય થયો હોય છે. કીન્દ્રિયદિક ત્રસ જીવે છે, કારણકે તેમને ત્રસ નામકર્મને ઉદય થયે હોય છે. એ જ પ્રમાણે સ્થાવર જીવ પિતાની ઈચ્છા પ્રમાણે એક જગ્યાએથી બીજી જગ્યાએ જઈ શકતા નથી. ત્રસજીવ પિતાની ઈચ્છા પ્રમાણે હરીફરી શકે છે. સૂ. ૧૩ હવે સૂત્રકાર તે કારણેને બતાવતા પ્રથમ પૃથિવીકાયની હિંસાનાં કારણે भाषेछ- करिसणपोक्खरिणी "त्यादि. ---"करिमण" दृषि-भती निमित्त “पोखरिणि" Rel For Private And Personal Use Only
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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