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________________ करणार्थाः [67-76] कुलरूपवचनयौवनधनमित्रैश्वर्यसंपदाप पुंसाम् / विनयप्रशमविहीना न शोजते निर्जलेव नदी // 6 // न तथा सुमहाध्यैरपि वस्त्रान्तरणैरलंकृतो नाति / श्रुतशीचमूलनिकको विनीतविनयो यथा नाति // 8 // गुर्वायत्ता यस्माच्छास्त्रारम्ना नवन्ति सर्वेऽपि / तस्मादाराधनपरेण हितकांक्षिणा जाव्यम् ॥६ए / / धन्यस्योपरि निपतत्यहितसमाचरणधर्मनिर्वापी। गुरुबदनमलयनिसृतो वचनसरसचन्दनस्पर्शः // 70 // दुःप्रतिकारौ मातापितरौ स्वामी गुरुश्च लोके ऽस्मिन् / तत्र गुरुरिहामुत्र च सुदुष्करतरप्रतीकारः // 71 // विनयफलं शुश्रूषा गुरुशुश्रूषाफलं श्रुतज्ञानम् / ज्ञानस्य फलं विरतिर्वेिरितिफलं चाश्रवनिरोधः ॥७शा संवरफलं तपोबलमय तपसो निर्जरा फलं दृष्टम् / तस्माक्रियानिवृत्तिः क्रियानिवृत्तेरयोगित्वम् // 73 // योगनिरोधाद्भवसंततिक्षय: संततिक्षयान्मोक्षः। तस्मात्कल्याणानां सर्वेषां नाजनं विनयः // 7 // विनयव्योतमनसो गुरुविद्वत्साधुपरिन्नवनशीलाः / त्रुटिमात्रविषयसङ्गादजरामरवनिरुद्विनाः // 5 // केचित्साहिरसातिगौरवात्सांप्रतेक्षिणः पुरुषाः। मोहात्समुद्भवायसवदामिषरा विनश्यन्ति // 6 //
SR No.020572
Book TitlePrashamrati
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages27
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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