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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रस्तावना. R व्याकरणना श्रन्यास विना कोपण नाषानुं सारं ज्ञान मेलवी शकाय नहीं. एज प्रमाणे प्राकृत-मागधी नाषानुं सारं ज्ञान मेलववा प्राकृत जाषाना व्याकरणतुं संपूर्ण अध्ययन आवश्यक . प्रायः प्राकृत भाषानो संबंध संस्कृत नाषा साथे बे तेथी संस्कृत जाषाना विद्वानोने या नाषामां प्रवेश करवो सुगम डे पण ज्यांसुधी नियमपूर्वक प्राकृत नाषाना रूपाख्यान जाणवामां थाव्या न होय त्यांसुधी ते जाषानुं संपूर्ण ज्ञान प्राप्त थतुं नथी. प्राकृत लाषानो प्रचार जैन सिद्धांत ग्रंथोमा विशेष डे तेथी ए जाया जैनोनी थार्ष नाषा गणाय . ते साथे श्रन्यदर्शनोमां पण काव्य नाट क विगेरेमां तेनुं बहुधा दर्शन जोवामां आवे डे माटे प्राकृत व्याकरणझान संपादन करवा था ग्रंथ शीखवानी जरूर जे. साहित्य ग्रंथोनी जेम व्याकरणना ग्रंथो नाषांतररूपे श्रति रसिक थता नथी पण था अभिनव जाषामा प्रवेश करवाने कांक सुगमता पमे तेमज स्फुट समजाएला नियमो याद राखवामां पण मदद थाय, एम समजी मूल अने टीकार्नु बरा. बर जाषांतर करवामां आव्युं बे. या ग्रंथ उपर टुंढिका नामनी प्रख्यात टीका , ते अहिं मूल श्रने नाषांतर साथे श्रापवामां श्रावी . ए टीका मां सर्व शब्दोनी साधनिका सूत्रना नियमोथी थापी डे अने कचित् शब्दपर्याय जणावी स्फुट अर्थ पण बताव्यो बे. लखवाने दीलगीरी थाय के, ए टुंढिकानी बीजी शुरूप्रति थमने मली शकी नहीं तेथी एकज प्रति उपरथी लखतां घणी मुसीबत पमी डे तथापि को ठेकाणे शंकाथी स्खलना थर होय तो विछान् वर्ग दमा श्रापशे. श्रा महान् उपयोगी ग्रंथ श्राचार्य श्रीहेमचंद्र सूरीए रचेला सिद्धहे मचंड शब्दानुशासन नामना संस्कृत व्याकरणनो श्रापमो अध्याय डे. ते उपर प्रकाशिका नामे स्वोपज्ञवृत्ति बे. या ग्रंथमा जे प्रत्येक सूत्रना प्र. योग तथा शब्दरूप सिक करेला तेमनो दृष्टांतरूपे उपयोग करी प्रा. कृतघ्याश्रयकाव्य नामे एक कुमारपालचरितनो ग्रंथ ते सूरिवर्ये रचे For Private and Personal Use Only
SR No.020570
Book TitlePrakrit Vyakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarmadashankar Damodar Shastri
PublisherNarmadashankar Damodar Shastri
Publication Year1904
Total Pages477
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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