SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 54
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भण--पढ़ना धातु के रूप पुल्लिग स्त्रीलिंग नपुंसकलिंग भणेज्ज, भणेज्जा भणन्ती, भणमाणी भणन्तं, भणमाणं भणन्तो, भणमाणो भणन्तां, भणमाणा भणन्ताई, भणमाणाई माण प्रत्यय वाले एवं बहुवचन के प्रयोग प्राकृत में कम देखने को मिलते हैं ; न्त और ज्ज प्रत्ययों का ही अधिक प्रयोग हुआ है, होता है। वाक्य-प्रयोग जइ तस्स गुणा हुंता ता नूणं जणो वि तं सलहतो (यदि उसमें गुण होते तो लोग अवश्य ही उसकी प्रशंसा करते); जइ तुम्ह तणयं हं न हरावंतो ता मे सुया मरंती (यदि तुम्हारे पुत्र का मैं हरण न करता तो मेरी पुत्री मारी जाती); जइ रायमग्गम्मि पयासो होज्जा, ता अम्हे खड्डम्मि ण पडेज्जा (यदि सड़क पर प्रकाश होता तो हम गड़हे में न गिरते); रावणो सीलं रक्खंतो तया रामो तं रक्खंतो (रावण यदि शील की रक्षा करता तो राम उसकी रक्षा करते); दीवो होतो तया अंधयारो नस्संतो (दीपक होता तो अन्धकार नष्ट हो जाता); जइ हं कम्म ण कुणेज्जा ता लोयस्स विणासो होज्जा (यदि मैं कर्म न करूं तो लोक-भ्रमण नष्ट हो जाए); सज्झायं कुव्वंतो णरो विणएण समाहिओ हवदि (स्वाध्यायरत मनुष्य विनय से युक्त हो जाता है); अप्पणो हियं इच्छंतो अप्पाणं विणए ठवेज्ज (आत्मा का कल्याण चाहते हुए आत्मा को विनय में लगाओ)। प्राकृत सीखें : ५३ For Private and Personal Use Only
SR No.020567
Book TitlePrakrit Sikhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsuman Jain
PublisherHirabhaiya Prakashan
Publication Year1979
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy