SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 400
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सत्ता दोहा वारेही कला तो गौ मारी। चाउद्दाहा मत्ताणा सौसारूनो छदाणाई। जहा, चंदा' कुंदा र कासा' हारा होरा र इंसा। जे जे सेत्ता बोला तुमा कित्ती जिसौभा ६५॥ सौसरूपक ।। ६४-६५ । सप्त दौर्घान् जानौहि कर्णान् चौन् गुरु मानय । उतईशमाचाणं शौर्षरूपच्छन्दमि ॥ शौर्षरूपच्छन्दमश्चतशमात्रस्य निर्वाहकान् मत दौर्घान जानीहि, नदेव विकृणोति चौन् कान्, की द्विगुरुरनान्तरमेकगुरुमित्यर्थः । उदाहरति । चन्द्रः कुन्दम् एतत् काशा हारो हौरं केलासः । थे ये श्वेता विनि दिनासाव कौा जिताः ॥ (C). ६४-६५ । अथ सप्ताक्षरचरणवृत्तम्य अंतिम [पाउं] भेदं शौर्षपकनामकं वृत्तं वक्षयति, सत्तेति । श्रादौ कणा तौ-कर्णन् गुरुदयात्मकान् गणान् चौन् तदनंतरं गो- गुरुं माहौमानय, एवंप्रकारेण चाउद्दाहा मत्ताण - चतईश मात्राः मत्ता, दोहा - सप्त दौर्षान् मौमाका धंदाण-शौर्षरूपककन्दमि जाणेहो-चायव जानौहि ॥ दौर्घसप्तकरचितचरणं शौर्षरूपक • 10-६५। १ मि (A). 'उहाला (A). औसा (A &E), मेसीपी (B&C). हा (B). ५ केवासा (B). ( रा (A & B), शाखा (C). पिविषा (A), कौशौचा (BC),बीमा (B). - कुमारी (A), गुन्हा (B), तुम्मा (C). जोपौषा (B), लिमिया (0). २. मौर. कपब (B). 48 For Private and Personal Use Only
SR No.020566
Book TitlePrakrit Paingalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandramohan Ghosh
PublisherCalcutta
Publication Year1902
Total Pages727
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy