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________________ - ७६ बत्तीस दोस परिसुछ। किश्कम्मं जोपजगुरूणं॥ ते प्राणी पांमे मोक्षना सुख थोमा कालमा वीमानीकपणुं अथवा प्रते। पांमे॥२६॥ सो पाव निव्वाणं। अचिरेण विमाण वासंवा ॥२६॥ ब गुणनु द्वार १४ इहां उ वली नपचार मांनादीकनो नंग गुरुनी गुण वीनय। पुजा होय३॥ इह बच्च गुणा विपनर । वयार माणाय नंगश्गुरुपूया३॥ तीर्थकरनी आज्ञानो आराध श्रुत जे जिनवचन धर्मनी आराध क होय। नाए नली कीरीया पांमे६॥२॥ तिजयराणय प्राणा। सुप्रधम्मा राहणाएकिरियाद गुरु थापना द्वार १५ गुरु जे थापीये अथवा गुरुने गंमे ॥२॥ गुणे करी जुक्त वली गुरु। थापनाचार्यादीक॥ गुरु गुणजुत्तं तु गुरु। गविजा अहव तब अकाइ॥ अथवा ज्ञानादी जे ज्ञान दर्शन थापे साक्षात गुरुने अनावे ॥२॥ चारीत्र ए त्रणनां नपगरण। अहवा नाणा तियं। विज सर्वं गुरु अनावे॥२॥ चंदनग कवमा अथवा। काष्टममादी पुस्तक गुरुमुर्ति चीत्रकर्म ते॥ अके वरामए वा। कठे पूडेय चित्तकम्मेय॥ थापना बे नेदे सदनाव ते वली गुरु थापना बे नेदे थोमा काल मुर्ति बादे असनाव ते नी पुस्तकादिर जावजीवनीमुर्ति आ थापना पुस्तकादि। देश ॥२॥ सनाव मसनावं। गुरु ठवणा इत्तरा वकहा ॥राणा साक्षात गुरुने वीरहे गुरुनी थापना। जाणेजे गुरुज बेठा श्रादेस दीयेने गुरुविरहमि उवणा। गुरुवएसो व दंसणबंच॥
SR No.020562
Book TitlePrakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavchand Jechand Shah
PublisherRavchand Jechand Shah
Publication Year1888
Total Pages226
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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