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________________ जोजन एकसो उंचपणे । ५२ सोनामय सीखरी लघु हीम [द्वार १० वंत एबे ॥ रूपीपर्वत महाहिमवंत पर्व जोया सय मुच्चिद्धा । कणयमया सिहरि चुल्ल्न्नहिमवंता॥ बसें जोजन नुंचा रूपी रूपानो महा हीमवंत सोनानो ॥ २७ ॥ त ए बे । चारसें जोजनना । रूप्पि महाहिमवंता । दुसु नच्चा रुप्प काय मया ॥ २७॥ नंचपणे नैषध नीलवंत ए बे ॥ नच्चिद्धो निसढ नीलवंतोय ॥ चत्तारि जोयण सए । नैषध तपाव्या सुवर्णमय बे | लीला रत्नवर्णो नीलवंत पर्वत बे॥ २८ ॥ निसढो तवणिद्यम | वेरुलिन नीलवतोय ॥१८॥ सर्वे पण शास्वता पर्वत । काल क्षेत्र वा श्रढीद्वपमाना मेरु वीना ॥ सव्वेवि पव्वयरा । प्रथवीतलमां नंमा । धरणीतले मुवगाढा । प्रथम खांnaiदीक गाथायें । खंमाई गाहाहिं । संग्रहणी समाप्त थइ | समयखीत्तंमि मंदर विहुला ॥ नंचपणाना चोथा नागमय बे ॥ १|| नस्सेय चच नायंमि ॥२९॥ दस द्वारे करी जंबूद्धीपनी ॥ सहिं दारेहिं जंबूद्दिवस्स ॥ या संग्रहणीनी श्रीयाक्यनी मह त्रीका प्रतीबोधीत श्री हरीन्द्रसू रिजीये रचना करी ॥३०॥ रइया हरिन सूरिहिं ॥३०॥ संघयणी सम्मत्ता । ए प्रकारे श्री संग्रहणी नामे प्रकरण संपूर्ण ॥ ४ ॥ ॥ इति श्री संघयणी समाप्तं ॥ ४ ॥
SR No.020562
Book TitlePrakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavchand Jechand Shah
PublisherRavchand Jechand Shah
Publication Year1888
Total Pages226
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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