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________________ हिमवंतगीरी सिखरीपर्वतने इंम एकसठ पर्वतने वीषे जे कुट || वीपे प्रत्येके अगीयार कुट। तेने॥ हिम सिहरिसु इक्कारस। इय गसी गिरिसु कुमाणं॥ एकता मेलवतां सर्वसंख्या थाय। चारसेंने समसत ६७कुटथाय।१५। एगत्ते सव्वधणं। सयचनरो सत्तसहीय ॥१५॥ ||घ्यार सात आठ नव। अगीयार? १ कुटे करीने गुणवा पुर्वे प र्वत६१ कह्याते जेम संख्या अनुक्रमे॥ चनसत्त अपनवगी। गारस कुमेहिं गुणह जह संख॥ एकसठ पर्वतनो मेल सोल बे ए एकसठ पर्वतना कुट समसठ बेबे नेगणच्यालीस। सहीत च्यारसें वे ॥१६॥ सोलसर दुश्दुश्गुण दुवेयश्सगसम्सयचनरो॥१६॥ |चोत्रीस वीजयने यालंण रूपनकुट चोत्रीस३४ श्रावण |वीषे जे कुट ले ते कहे जे॥ मेरूनपर आउ जंबु वृक्षे डे॥ | चन्तीसं विजएसु। सुकुमा अमेरू जंवूम्मि॥ आउण्कुट देवकुरूने वी हरीकुट हरीसकुट ए सहीत साठ नूमी ॥ कुट ॥१७॥ द्वार ५ | अव्य देवकुराई। हरीकुमहरिस्सहे सही॥२॥द्वारय द्वार ६ हवे तीर्थ केहेले माग तीर्थ बत्रीसवीजयमां ऐरव्रतमां नर ध वरदांम प्रनास ए नांमे। तमां ॥ | मागह वरदाम पनासं। तिब विजएसु३२ऐरवय नरहे। एकनामे चोत्रीस ने तेहने त्रण बेइंअधीक एकसो१०२ तीर्थ जां गुण करता। गवां ॥१॥ द्वार ६ चनतीसा तिहिंगुणिया। दुरुत्तर सयंतु तिवाणं ॥१७॥|| -
SR No.020562
Book TitlePrakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavchand Jechand Shah
PublisherRavchand Jechand Shah
Publication Year1888
Total Pages226
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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