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________________ - - २०६ एटले वीषयवशथी वीवेकहीण थयो तेथी माहारुं ॥ दशा वशा स्वं विषयांधलेन ॥ प्रकाश्युं प्रगट करयुं कर्तुं ते तमारा आगल वा समीप चरीत्र लज्या - प्रकाशितं तद्भवतो जियैव ।। [ई करीनेज। हे सर्वज्ञ सघलं पापणी मेले नीचे जाणोडो एटले मारूं चरीत्र केटलुं कहुं बाप सर्व जागने ॥ ११ ॥ सर्वज्ञ सर्व स्वय मेव वेसि ॥ ११ ॥ वली में आम कस्युं ते कहे अनादर करयो अन्यमंत्र जे मारण मोह नन्चाटनादिथी परम इष्टपदवंते नजरखाव्यो जे परमेष्टीमंत्र तेहनो। ध्वस्तो न्यमंत्रैः परमेष्टि मंत्रः। कुशास्त्र जे कामक्रोधादीक दीपावकनां वाक्य ते जएयो सांजल्यां ने सिद्धांत न जएयो अर्थात् यर्थाथ न आदरयां पागम वचन ॥ कुशास्त्रवाक्यै निहिता गमोक्तिः॥ करवाने फोगट पापकर्म कुदेव जे रागद्वेष सहीत तेमना संघथी। __ कर्तुं तथा कर्म कुदेव संगात् । वांबा करी हे नाथ ए माहारी मतीनो वीभ्रम नदय थयो ॥१२॥ अवांगिहि नाथ मति भ्रमो मे ॥ १२॥ नेत्रमारगे धावेला एहवा तमोने मुकीने । विमुच्य दृक् लक्ष्य गतं नवंतं । ध्याया वा चिंतव्या में मूढबुद्धीइं अंतःकरणने वीषे ॥ ध्याता मया मूढधिया दंतः॥ कटाक्ष जे नेत्रवीकार वक्ष्योज स्तन गंजीरनानी। कटाद वदोजगनीर नानी। - -
SR No.020562
Book TitlePrakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavchand Jechand Shah
PublisherRavchand Jechand Shah
Publication Year1888
Total Pages226
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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