SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 189
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मंत्र तंत्र विद्या न जोइस । १८४ जइस नही परना घरमा एकलो बी जादीक वीना ॥ गम्मइ नइ परग्गहे अबीएहिं ॥ ननु कुलीप तेहने होय ए रीते ॥२०॥ मंतंताण न पासे । आपणी पादरी प्रतीज्ञा वा वृत पालीए । पमिवन्नं पालिका । मीत्रने घेर जमीए मीत्र ने जमामीए । सुकुलीत्तं हवइ एवं ॥२०॥ पुढीए मनमां वीचार नपजे ते पुढे तेहने कहीए श्राप ॥ मुंजइ मुंजाविकइ । पुचिक मणोगयं कहिऊ सयं ॥ सार वस्तु मीत्रने दीजे मीत्र जो वांबीए जीवारे नीश्वल स्नेह श्रापे ते लीजीए जोग वस्तु । मीत्रथी तो ॥ २१ ॥ दिकइ लिऊइ नचियं । इचिकर ज‍ थिरं पिम्मं ॥ ११२ ॥ कोइने पिए न अपमान दी न गर्व करीए दांनादीक बते गुणे जीए । पोताने ॥ कोवि न श्रवमन्निजइ । नय गव्विक गुणेहिं नि एहि न वीस्मय वा यचरीज चीतमां घणां रत्ने करी जे माटे ए प्र लावीए जगमां कांड अचरीज नथी । थवी जरी बे ॥ २२ ॥ नय विम्हन वहिज्जइ । बहु रयणा जेणिमा पुहवी ॥ २२॥ प्रारंभ वा प्रथम कार्य हल करीए काम मोहोटु पए पढेथी | वो वा थोमो कीजे । आरंभिज्जइ लहु । न आपण नत्कृष्टपणु ते की जीए । नय नक्करिसो किज्जइ । किज्जइ कज्ज महंत मवि पच्चा ॥ पांमीए मोहोटाइप जेणे करीने ॥२३॥ लन गुरुत्तणं जेए ॥ २३ ॥
SR No.020562
Book TitlePrakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavchand Jechand Shah
PublisherRavchand Jechand Shah
Publication Year1888
Total Pages226
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy