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________________ २६५ समृद्धी प्रते पांमो नर्मदा. ते नखं घणो काल जेपीई पाल्यु सुंदरी। सुध सील ॥ नंदन नमया सुंदरि। सा सुचिरं जीइं पालियं सीलं॥ कष्ट पमे गहिलापणुं पीण सहन करी विटंबना घणा घणा प्रका करीने। रनी ॥७॥ गहिलत्तणंपि काळं। सहिआय विमंबणा विविहाना कल्याण होवो कलावती बीहामणा रणमां राजाए तजी सतीने। वा मी॥ नई कलावईए। नीसण रन्नंमि राय चत्ताए॥ जे ते सतीना सीलगुणे क देलां अंग हस्तादी फरी नवां रीने। थयां ॥॥ जं सा सीलगुणेणं। जिनंग पुण नवा जाया ॥५॥ |सीलवतीना सील प्रते। समर्थ सुधर्माइंद्र पण वर्णववाने नही॥ __ सीलवश्ए सीलं। सक्कर सक्कोवि वनि नेव॥ राजाना मोकल्या प्रधान चारेने पिण सील राखवा प्रकसे व वा मेहेता। ग्या जेणे॥१०॥ | रायनिनत्ता सचिवा। चनरोवि पवंचित्रा जीए॥१॥ ज्ञान अतिसय लक्ष्मी सहि जलो धर्मलान जेहने मोकलाव्यो। त माहावीर परमेश्वरे। सिरि वघमाण पहुणा। सुधम्मलानुत्ति जी परविन ते जयवंती जगमाहे वर्तो सु शरदरूतुना चंद्रमानीपरे निर्मल लसा श्रावीका। सीलगुरणे ॥११॥ सा जयन जए सुलसा। सारय ससि विमल सीलगुणा कम महादेव ब्रह्मा इंद्र ए मद वा अहंकारने जाग
SR No.020562
Book TitlePrakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavchand Jechand Shah
PublisherRavchand Jechand Shah
Publication Year1888
Total Pages226
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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