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________________ - चारित्र लेइने सिद्धिपद पांम्यो।नदायननांमे बेहलो राजरूपी॥१॥ पवईकण सिघो। नदाश्णो चरम रायरिसी॥१॥ जिनघर वा जिनप्रासादे करी देइने अनुकंपा दांन तथा नक्ती सोनावी जूमीममलने। दांन ॥ जिणहर मंमिय वसुहा। दावं अणुकंप नत्ति दाणाई॥ तिर्थप्रनावक पुरुषोमां रेखा समस्त पांम्यो संप्रतीनांमे राजा समांनपणु। श्रीआर्यसुहस्तीसूरि वचने॥१३॥ तिब पनावग रेहि। संपत्तो संपश् राया ॥१३॥ देइने श्रद्धा सुद्धवमे करीने। सुधमान अमदना वाकला मोटा मुनिश्वरने॥ दानं सघा सुधे। सुघे कुम्मासए महा मुणिणो॥ श्री मुलदेव नामे कुमर। राज्यनी लक्ष्मी प्रते पांम्यो मोटीर ४ | सिरि मूलदेव कुमरो। रऊ सिरिं पाविन गुरुइं॥१४॥ अतिवणुं दांन तेणे करी मुखर हे रच्यां सहीकमांनी संख्याए का वा जे कविजन वा पंमित तेणे। व्य तेथी विस्तरयुं॥ । अश्दा मुहर कविश्रण। विरश्नसय संख कव्व विब विक्रमादित्य राजानुं चरित्र वाजपिण लोकमां समस्त रि ते। पणे विस्तरे ॥१५॥ विक्कम नरिंद चरिअं। अवि लोए परिप्फुर॥१॥ त्रणलोक वा समस्त जीवलो तेज नवमां सिद्धिगांमी बेलाज सा|| कना बंधव वा नाई एहवा। मान्य केवलीमां इंद्र ते तीर्थंकर ॥|| तियलो बंधवहिं। तनव चरिमहिं जिणवरिंदोहिं॥ ऋत्यकत्य तेमने पण दी, हेदूं। वरषप्रमाण मोहोटुं दांन ॥१६॥ कय किच्चेहि वि दिन्नं । संवचरिअं महा दाणं ॥१६॥
SR No.020562
Book TitlePrakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavchand Jechand Shah
PublisherRavchand Jechand Shah
Publication Year1888
Total Pages226
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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