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________________ - २पाए दांने करी बावज्यु ले रिदय वैरी पण निश्चे दायकने घेर पाणी एहवं के। वहे दासपणुं करे ॥४॥ दाणा वङिय हिय वयरी वि हु पाणियं वह ॥४॥ धनासार्थवाहने नवे श्री रूष जे घीनुं दांन करघु जला श्रीधर्म नदेवजीनो जीव। घोषसूरी प्रमुष साधूने ॥ धणसबवाह जम्मे। जं घयदाणं कयं सु साहूणं ॥ ते महा पुण्यना कारण थकी त्रीणलोकना पीतामह वा दादा श्री रूपनदेव जिन। थया ॥५॥ तकारण मुसन जिणो। तेलुक पियामहो जान॥५॥ रूपाइं करी दीधुं अनयदां पालना नवमां तेथी ग्रयुं पुन्यरूप न पारेवा प्रते। किरियापुं॥ करुणा दिन्न दाणं । जम्मंतर गहिय पुन्न किरियाणं। तेथी तिर्थकरपद तथा चक्रव पांम्यो सांतिनाथ सोलमो तीर्थ ीपद एबेरिद्वी एकनवमां। कर पिण ॥६॥ तिबयर चक्क रिधि। संपत्तो सतिनाहो वि॥६॥ पांचसे साधु मुनिप्रते आहारा दांने करी नपार्यो नत्तम पुन्यनो |दि जोजन। प्राग्जार एहवू ॥ __पंचसय साहु नोअण। दाणावङिय सु पुन्न पप्नारो॥ पार्श्वयकारी जे चरित्र तेणे जरतचक्रवर्ती श्री रूपनदेवनो पु जरयो एहवो। त्र जरतक्षेत्रनो स्वामी थयो॥७॥ अबरिय चरिय नरिन । नरहो नरहाहिवो जाना॥ मूल लिधां विनां पिण गीलाण वा रोगी मुनिने याचरवा यो दिधी। ग्य वस्तु तेथी॥ मुन्नं विणावि दानं । गिलाण पमिअरण जोग वणि॥ | -
SR No.020562
Book TitlePrakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavchand Jechand Shah
PublisherRavchand Jechand Shah
Publication Year1888
Total Pages226
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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