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________________ - १५७ चोरी पसत्तस्स सरीर नासो॥ तिमज परनारीथी जे आसक्त बे तेहने । तहा परबीसु पसत्त यस्स। |सर्व पूर्वोक्त जला गुणनो नाश थाय वली अधमगती पांमे॥१॥ सव्वस्स नासो अहमा गईय ॥१॥ दांन देवू निर्धनपणामां ने वली ठकुराई पांमे षिमा गुण ते। दाणं दरीदस्स पहुस्स खंती। तथा इच्छा वा अनिलाषनो रोधक ननो होय जेहने ते ॥ इचा निरोहो सुहोइ यस्स ॥ जवानीमा जे इंद्रियोने वश राखे ते। - तारुन्नए इंदिय निग्गहोय । चारे ए जे प्रथम कह्या ते नर नला दुकरकारी जांणवा ॥१९॥ चत्तारि एयाणि सुदुक्कराणी ॥४॥ अशास्वतूं जीवीत कां ने संसारी जीवलोकने विषे। __ असासयं जीविय माहुलोए। तेमाटे हे नला प्राणीयोधर्म बादरो श्रुत चारित्ररूप धर्म नत्तम साधू धम्मंचरे साहजिणो व॥ जिनेश्वरनो कह्यो। ते धर्म जीवने रखोपानो करणहार ने सरण ले नंचगती देणहार। | धम्मोय ताणं सरणं गईय। धर्म समस्त सेवी आदरी पाली अव्याबाध सुख पांमे ॥२०॥ धम्मं निसेवितुं सुहं लहंति ॥३॥ ए रीते धर्मोपदेश लक्ष्मीवंत गनुतमकुलक समाप्तम् संपूर्ण ॥ इति श्री गौतमकुलक संपूणम्॥ - -
SR No.020562
Book TitlePrakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavchand Jechand Shah
PublisherRavchand Jechand Shah
Publication Year1888
Total Pages226
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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