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________________ २५३ - - मायानयं किंसरणंतु सच्चं।लोहो दुहो किंसुहमाह तुरी बुद्धि अती सेवे विनयवंत प्राणीने। क्रोधी कुशीलीयाने सेवेअकीति बुधिअचमं नयए वीणीयं। कुछ कुशीलं नयए अकित्ति॥ नग्नचितवंतने सेवे अलब वा नी सत्येस्थितने समस्तपणे सेवे रधनपगुं। लक्ष्मी ॥५॥ संनिन्नचितं नयए अलबी। सच्चेपीयं संनयए सिरियर तजे वा बांके मित्र सजन पीण तजे बांके पाप जे दुःकर्म मुनि नर जे करया गुणने हणे तेने। जितेंद्री प्रते॥ चयंति मित्ताणी नरकयघं। चयंति पावा मुणिं जयंतं॥ तजे बांझे सुका सरोवर प्रते हंस तजे मे बुद्धि कोपीत रीसा ल मनुष्य प्रते ॥६॥ चयंति सुक्काणि सराणि हंसा। चएइ बुधी कुवियंमणुस्संद जेहने हैए धारणा नही तेहने धरम गइवातनुं वा अर्थ- केहेतुं ते वचनादी कहे, ते विलाप ते फोगट वीलाप ॥ असंपहारे कहिए विलावो।अईयअडे कहिए विलावो॥ विन्निचितवंतने हितवचन- के घणा माठा सिष्य तेहने हित हेवं ते विलाप। वचन केहेवं ते विलाप॥७॥ विकित्तचित्ते कहिए विलावो।बहु कुसीसे कहिए विलावो दुष्ट राजा प्रजाने झमवामां त वीद्याधर नर मंत्र साधन [॥॥ त्पर हुई। मां तत्पर हुई। दुहीवा दंम परा हवंति। विजाहरा मंत परा हवंति॥ मूर्ख नर ते कोपमांज तत्पर हू नलामुनिसर तत्वग्रहणमां तत्प र हुई॥॥ मुखानरा कोव परा हवंति।सुसाहुणो तत्तपरा हवंति ।
SR No.020562
Book TitlePrakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavchand Jechand Shah
PublisherRavchand Jechand Shah
Publication Year1888
Total Pages226
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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