SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 127
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - - - - १२३ इकिकमित्र जीवो। अणंत खुत्तो समुप्पन्नो॥१॥|| माता वा जनेता पीता वा संसारमा रहे थके पुरीत एहवो जी| जनक बंधु वा सहोदर। वलोक ॥ माया पिय बंधूहिं। संसारबेहिं पूरिन लोग्गो॥ घणी ज्योनी समस्त निवासी नथी ते जीव प्रते रक्षण अर्थे कोई वा वसावी। सरण वली ॥१॥ बहु जोणि निवासीहिं। नय ते ताणंच सरणंच॥॥ जीव जे ते व्याधी वा रोगे मनीपरे पाणी रहीत थलमां था व्याप्त थयो थको। कुल व्याकुल थाय ॥ जीवो वाहि विलुत्तो। सफरोश्व निङले तमफमः॥ सर्व सजन सबंधी पण जन कोण समर्थ वेदना दुर करवा अ जुई। र्थात् कोई नहीं ॥२०॥ सयलो वि जणो पिछा को सको वेत्रणा विगम॥३॥ न जाणीस हे जीव तुं। पुत्र स्त्रीयादे परीवार मुजने सुखना हेतु ॥ __ मा जाणसु जीव तुमं। पुतं कलत्ता मस सुह हेक॥ तो स्युं नीचे तुजने बंधन कीहां संसारमा फरतां थकां ले एहवा ते। निनण बंधण मेअं। संसारे संसरंताणं ॥१॥ माता होय ते जवांतरे थाय वली स्त्री होय ते माता थाय पी स्त्रीपणे। ता होय ते पुत्र थाय ॥ जणणी जाय जाया। जाया माया पिप्राय पुत्तो॥ अनवस्तीत वा अनीम स्याथी कर्मना वसथी संसारी सर्व संसारमा। जीवने ॥॥ अणवबा संसारे। कम्मवसा सव्व जीवाणं ॥२२॥ - - - ॥३१॥ - । - -
SR No.020562
Book TitlePrakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavchand Jechand Shah
PublisherRavchand Jechand Shah
Publication Year1888
Total Pages226
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy