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________________ - पास वा समीपपणु कीमही तसमात् कारणात् हे जीव धर्मे पण नथी मुकतो। नद्यम कर ॥॥ पासं कहवि नमुंच। ता धम्मे नऊमं कुणह॥॥ कालमां अनादीकालथी रह्यो।जीव वीवीध प्रकारना कर्मना वसथी|| __ कालंमि अणाईए। जीवाणं विविह कम्म वसगाणं॥ तेहवु नथी संवीधान वा नेद। संसारमांनमतां जेह न संजवे॥१०॥ तं नबि संविहाणं। संसारे जं न संनव॥१०॥ बंधव वा जाइसजन सुहृद वा मीत्र।पीता माता पुत्र नार्या वा स्त्री॥ ___ बंधवा सुहिणो सव्वै। पिय माया पुत्त नारिया ॥ पीत्रवन वा मसाणे पोचामे। देइने पाणीनी अंजली एम स्वार्थी ११ पेवणान निअतंति। दाकणं सलिलंजलिं ॥१२॥ वीडमे सुत वा पुत्र वीमे। नाइ वीबमे नलो संचीत अर्थ वा धन॥ विहमति सुत्राविहमति । बंधवा विहम सुसांचा अबो एक कोइ दिवस न वीबोधर्म यरे जीव श्री जिनेश्वर कह्यो ते।श को कहवि न विहम।धम्मोरेजीव जिनपिनार॥ थापकर्मना पासथी बंधायो। जीव संसाररूप बंधीखानामां रहे ॥i अमकम्म पास बघो। जीवो संसार चारए ग॥l |ने तेज आवकर्मरूप पासलो यात्मा सिव वा मोक्षरूप घरमा मुक्याथी। रहे ॥१३॥ श्रमकम्म पास मुक्को। आया सिव मंदिरे ग॥१३॥ वैनव धन्यादिक सजन मा तथा वीषयनां सुर ता पीतादिकनो समागम। नोज्ञ ॥ विहवो सङण संगो। विसय सुहाई विलास ललिआई॥ - -
SR No.020562
Book TitlePrakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavchand Jechand Shah
PublisherRavchand Jechand Shah
Publication Year1888
Total Pages226
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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