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________________ % 3D - Ama दुकर मेएहिं कयं। जेहिं समबेहिं जुव्वणबेहिं ॥ नाग्यु वा नसामर्थ्य इंदिन धृती वा संतोसरूप प्राकार वा को रूपीयु सैन्य जेणे। टे वलगे थके एन॥ जग्गं इंदिअ सिन्नं। धि पायारं विलग्गेहिए॥ ते पुरुषने धन्य तथा ते ने दास तुं हुं ते संजमधर जीवो पुरुषने नमो। नो॥ तेधन्ना ताणनमो। दासोहं ताण संजम धराणं ॥ अर्धी आंखे वा वक ध्रष्टीइं जे पुरुषना नथी रदयमां खटकंती जोनारी एहवी जे स्त्री। एए॥ __ अघटि पिचरी। जाण न हिअए खमुकंति॥ण्णा किं वा स्युं घणु केहेवे जो हे जीव तुं सास्वता सुख रोग रही वा जदी इच्छे। त प्रते॥ किं बहुणा जश् वंसि । जीव तुंमं सासयं सुहं अरु॥ तो पीई पुर्वे कह्या जे आ वी ने संवेग वा संसार दुःखनी खाण षय तेथी वीमुख थई। ते रूप रसायण नीत्य॥१०॥ तापि अमु विसय विमुहो। संवेग रसायणं निच्च॥१०॥ एम समाप्ती थयु इंद्रिसतक टबार्थ जाणवो॥ इति इंदिसतक संपूर्णम् ॥ हवे वैराग्य नामा सतक टबार्थ कहे ते जाणवो॥ __ अथ वैराग्यसतक सूत्र शब्दार्थ प्रारंन ॥ चारगतिमां संचरर्बु ते हे जीव नथी सातासुख केवल व्या धी देहसमंदि वेदना मन समंदि पी मा प्रचूर वा घणी ॥ संसारंमि असारे। नबि सुहं वाहि वेयणा परे॥ - - चारगति र असारमा
SR No.020562
Book TitlePrakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavchand Jechand Shah
PublisherRavchand Jechand Shah
Publication Year1888
Total Pages226
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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