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________________ - - - - २० ने खेदनी वात के नरके ॥ विसय विसेणं जीवा। जिणधम्म हारिनण हा नरयं॥ जायजे जेम चीत्रमुनिइं। घणु वारयो नाइ भ्रमदत्त चक्रवृतीनृपा६॥ वच्चंति जहा चित्तय। निवारिन बंनदत्तनिवो॥६॥ धीकार धीकार हो तेहवा जे जिनेश्वरना वचनरूप अमृत पण नरोने। मुकीने ॥ सीधी ताणनराणं। जे जिणवयणा मयंपि मुतूणं॥ चारगतीमां भ्रमणरूप वीटं पीएने वीषयरूप मदिरा आकरी बणानु कारण। ॥६६॥ चन्ग विझवण करं। पियंति विसया सवं घोरं॥३६॥ मरणांत कष्ट आवे थके प मान वा अहंकार धारी जे पुरुष ए दीन वचन। न बोले ॥ मरणेवि दीपवयणं। मागधरा जेनरा न जंपंति॥ ते नर पण नीचे करे वा बो स्याथी स्त्रीना स्नेहरूप ग्रह थकी घे ले ललीत वा दीनवचन। हेला नर ते ॥६॥ तेविहु कुणति लग्नि। बालाणं नेह गह गहिला॥६॥ सक वा इंद्र पण नहीं सा माहात्म्य वा महीमा आमंबर मर्थ थाय। वीस्तरयो जेहनो॥ सक्कोवि नेव संक। माहप्प ममुप्फरंजएजेसिं ॥ तेहवा पण नरने नारी वा स्त्रीइं। कराव्यु आपणु दासपणु ॥ ६॥ तेवि नरा नारीहिं। कराविश्रा नियय दासत्तं॥६॥ जादवनो पुत्र मोहोटा आ नेमनाथ प्रनुनो नाइ वली व्रतधा त्मानो धणी। री वली ते नवमां मोक्षगांमी ॥ जन नंदणो महप्पा। जिणनाया वयधरो चरमदेहो। - - -
SR No.020562
Book TitlePrakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavchand Jechand Shah
PublisherRavchand Jechand Shah
Publication Year1888
Total Pages226
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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